फ्लोरेन्श नाईटेंगिल जयंती पर प्रो.भगवत नारायण शर्मा ने रखे विचार

विश्व नर्स दिवस/विशेष
हमारी नर्सें सचमुच देवदूत हैं : प्रो.शर्मा
ललितपुर। विश्व नर्स दिवस पर आयोजित एक परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो.भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि भारतीय वैदिक ऋषियों की कामना है कि सब सुखी हों, सब निरोगी हों और सबका कल्याण हो। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भारतीय चिकित्सा विज्ञान और उपचार पद्यतियां अंग्रेजों से आने से पूर्व कभी भी धन कमाने का साधन नहीं रही है। हमारी आयुर्वेदिक पद्यति स्वार्थमुक्त निष्काम सेवा का माध्यम रही है। त्रेता- युग में राम रावण यद्ध के समय जब लक्ष्मणजी मूर्छित हुए तो सेवावृतधारी हनुमानजी शत्रु पक्ष के वैद्य सुषेण को ले ही नहीं आये बल्कि चिकित्सक द्वारा वांधित संजीवन बूटी समय के भीतर उपलब्ध करा दी। उनके मन-मस्तिष्क में बिल्कुल भी दुविधा नही रही कि शत्रु पक्ष का चिकित्सक हम बुलाये कि नही बुलाये, क्योंकि अपने देश की समृद्ध उपचार परम्परा शत्रु और मित्र में भेद नहीं करती। शाम के समय युद्ध बंद हो जाने के बाद अर्जुन के रथ के सारथी श्रीकृष्ण रथ के घोड़ों को खरहरा करते हैं, शरीर में चुभे काँटो को निकालते हैं, उन्हें पानी पिलाते हैं और दानारातिव (रतेवा) तैयार करके अपने पीताम्बर में बाँधकर लाते हैं। सिक्खों के गुरु गोविन्दसिंह शत्रु और मित्र पक्ष में बिल्कुल भी भेदभाव नहीं करते और तुरन्त घावों पर मरहम लगा देते। 12 मई 1820 को इंगलैण्ड में नर्सिंग-सेवा की जनक फ्लोरेन्श नाईटेंगिल का एक देवदूत की तरह आगमन हुआ, वे करुणा, प्रेम और सेवा की प्रतिमूर्ति थीं। घायलों और रोगियों की आधी समस्या तो उनकी प्रेमिल मुस्कान से छूमंतर हो जाती थी। यद्यपि वे ब्रिटेन के एक बहुत सम्पन्न परिवार की थी तथा गणित विषय की अपने जमाने की असाधारण विद्वान थी। परन्तु उन्होंने अपने गणितीय कौशल का उपयोग अस्वस्थ और स्वस्थ मनुष्यों की सांख्यिकी तैयार करके उन्हे समयबद्ध उपचार देने में केन्द्रित किया। जब रात को ङ्यूटी समाप्त करके चिकित्सक और उनका स्टॉफ घर चला जाता था तो वे मोमबत्ती जलाकर एक एक मरीज की शैय्या तक जाकर और उसके सिर पर हाथ फेरकर यह जताती थी कि घबराओ नही, मैं हूँ न! 1854 में 38 नर्सों के साथ जब उन्हें तुर्की में भेजा गया तो उनके वात्सल्यपूर्ण सेवा भाव को देखकर उन्हें लेडी विथ द लैम्प अर्थात ज्योति की वाहक वीरांगना उपाधि से विभूषित किया गया। नर्सिंग सेवा का जो बीजारोपण उन्होंने इंग्लैण्ड की धरती पर किया था उसकी कलम सबसे ज्यादा अपने देश के केरल की दया और ममता से आद्र भूमि पर सबसे ज्यादा लहलहा रही है। यहां शत प्रतिशत साक्षरता जितनी व्यक्तिगत कैरियर बनाने के लिए नहीं है उससे ज्यादा सेवा करने के लिए है। फलस्वरूप चाहे यूरोपीय विकसित देश हो, चाहे विकासशील खाड़ी के देश हो, हजारों की संख्या में हमारे यहां की सुदक्ष और ममतालु नर्सें सेवा के क्षेत्र में आत्मार्पित होकर देश का नाम ऊँचा कर रही हैं। कैसी अकल्पनीय त्रासदी है कि एक ओर हमारी नर्सें स्वयं संक्रमित हो जाने के खतरे को झेलते हुए परिचर्चा के अग्रिम मोर्चे पर अपराजेय योद्धा की तरह डटी हुई है और दूसरी ओर ऐसे क्रूर नरपिशाच भी देखने को मिल रहे हैं जो शमशान और कब्रिस्तान से कफऩ चुरा कर उन्हें नयी पैकिंग में ढालकर बाजार में फिर से बेच रहे हैं। यहां तक कि कानपुर जैसे औद्योगिक नगरों से ऐसी भी खबरें आ रही है कि ऐसे आदमीनुमा राक्षस मृतकों की उनकेे शोक-संतप्त परिवारों को मुख दिखाई कराने के नाम पर भारी रिश्वत वसूल रहे हैं।

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