ललित लोकवाणी का अभियान

जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता पशुओं के चारे का संकट
ललितपुर। हमारा भारत कृषि प्रधान देश है देश की लगभग 70त्न जनसंख्या गांव में रहती है और अपनी आजीविका चलाने के लिए वे कृषि और पशुपालन पर निर्भर है जलवायु परिवर्तन की समस्या से हमारे देश में सब कुछ प्रभावित हो रहा है। देश का किसान वर्ग जो पशु पालन कर रहा है जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पशुओं के चारे की उपलब्धता पर पड़ता दिखाई दे रहा है। पशुओं के लिए हरे चारे की और दाने की कमी पहले से ही है। जिसका पशुओं की उत्पादकता पर प्रतिकूल प्रभाव रहा है। हमारे बुंदेलखंड क्षेत्र में अधिकतर पशुओं को केवल गेहूं का सूखा भूसा खिलाकर पालन पोषण किया जाता है। गेहूं के सूखे भूसे एवं पराली मैं सिल्का एवं ऑक्जेलिक अम्ल प्रचुर मात्रा मैं पाया जाता है, जिसको लगातार खिलाने से पशुओं में विभिन्न प्रकार की बीमारियां पैदा हो जाती हैं, जिससे पशु का समय से गर्भ ना ठहरना, पशुओं की त्वचा खुरदरी हो जाना, पशु कमजोर हो जाना तथा दूध देने वाले पशुओं में दूध की मात्रा का घट जाना आदि समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं। उक्त बात कृषि विज्ञान केंद्र ललितपुर के वैज्ञानिक श्री नितिन कुमार पाण्डेय एग्रीकल्चर एक्सटेंशन (कृषि विज्ञान केंद्र खिरिया मिश्र ललितपुर (बांदा कृषि एवं प्रोघौगिक विश्वविधालय) ने सामुदायिक रेडियो स्टेशन ललित लोकवाणी के कार्यक्रम में विचार व्यक्त करते हुए कही। वर्तमान में सामुदायिक रेडियो ललित लोकवाणी और अन्य रेडियो पार्टनर मिलकर डेवलपमेंट अल्टरनेटिव्स एवं अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के साथ जलवायु परिवर्तन जैसे गंभीर बड़े मुद्दे पर कार्य कर रहा है सामुदायिक रेडियो ललितलोकवाणी ने पशुओं के चारे की उपलब्धता के बारे में कृषि विज्ञान केंद्र खिरिया मिश्र में डॉक्टर सरिता यादव जी से चर्चा की गई तब उन्होंने बताया कि पशुओं के लिए हरे चारे का बहुत महत्व है हरे चारे में विभिन्न पोषक तत्व जैसे कार्बोहाइड्रेट प्रोटीन विटामिन एवं खनिज लवण प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं प्रोटीन पशुओं में होने वाली विभिन्न प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करती है। हरे चारे में प्रचुर मात्रा में कैरोटीन पाया जाता है, जो विटामिन ए का काम करता है। ये पशुओं में अंधेपन की बीमारी से मुक्ति दिलाता है। पशुओं को हरा चारा खिलाने से रक्त संचार में भी वृद्धि हो जाती है। सामुदायिक रेडियो ललित लोकवाणी से रिपोर्टर काशीराम जी ने ग्राम पिपरिया बंशा के एक किसान पशु पालक मनोज कुमार जी से पूछा कि वे अपने पशुओं को किस तरह का चारा खिलाते हो तो उन्होंने बताया कि पहले हमारे पशु जंगलों में चरने जाते थे, अब जंगलों में चरने वाली जमीन नहीं बची। इसलिए अब हम जो खेती किसानी करके गेहूं का भूसा और आटे को मिलाकर शानी बनाकर तो कभी बरसीन या अन्य तरह का सूखा खिलाते हैं उन्होंने कहा कि आजकल पशुओं के लिए और कौन-कौन से चारे उपलब्ध हैं। उन्हें रेडियो कार्यक्रमों के माध्यम से जानकारी और दी जाय। चारे की उपलब्धता पर जब कृषि विशेषज्ञ श्री धर्मेंद्र सिंह जी से चर्चा की गई तो उन्होंने पशुओं के लिए कई नई नई किस्मों की जानकारी दी उन्होंने बताया कि पशुओं के लिए हरा चारा सबसे जरूरी होता है। हरा चारा न मिले तो दुधारू पशुओं के स्वास्थ्य और दूध उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। अप्रैल महीने तक हमें बरसीम, जई (जौ), रिजका आदि का हरा चारा मिल जाता है। लेकिन मई -जून महीने में अक्सर इसकी कमी हो जाती है। ऐसे में किसान आलू, सरसों जैसी फसलों की कटाई के बाद चारे वाली फसलों की खेती कर सकते हैं। हरे चारे के तौर पर किसान कई फसलों का प्रयोग करते हैं। उन्होंने कुछ विशेष घासों के बारे में जानकारी दी। नेपियर घास इसे लगाने के लगभग 50 दिनों बाद कटाई की जा सकती है। पहली कटाई के बाद हर 35-40 दिन के अंतराल पर  इसकी कटाई कर सकते हैं। इसे एक बार लगा कर 4 से 5 वर्षों तक हरा चारा प्राप्त किया जा सकता है। प्रति एकड़ जमीन से 300 से 400 क्विंटल हरे चारे की प्राप्ति होती है। ज्वार उत्तर भारत में इसकी खेती खरीफ मौसम में की जाती है। इसकी बुवाई के लिए अप्रैल से जुलाई का महीना सबसे बेहतर है। इसकी एक बार खेती कर किसान कई बार कटाई कर के चारा प्राप्त कर सकते हैं। बुवाई के करीब 50 से 60 दिनों बाद पहली कटाई की जाती है। प्रति एकड़ जमीन से हर कटाई से लगभग 80-100 क्विंटल हरा चारा प्राप्त कर सकते हैं। ग्वार फली प्रचुर मात्रा में प्रोटीन और फाइबर होने के कारण यह पशुओं के लिए बेहतरीन चारा है। इसकी खेती गर्मी और बारिश दोनों मौसम में की जाती है। गर्मी की फसल के लिए फरवरी-मार्च में बुवाई की जाती है। वहीं बारिश के मौसम वाली किस्मों की बुवाई जून-जुलाई में करनी चाहिए। लोबिया : इसमें अधिक मात्रा में प्रोटीन पाई जाती है। इसके साथ ही यह फॉसफोरस और कैल्शियम का भी अच्छा स्रोत है। प्रति एकड़ जमीन से औसतन 28 से 32 क्विंटल फसल प्राप्त की जा सकती है। मार्च- अप्रैल का महीना इसकी बुवाई के लिए सर्वोत्तम है। मक्का मक्का का चारा मुलायम होता है। चारा के लिए अफ्रीकन टाल, जे 1006 और प्रताप चारा-6 किस्मों की खेती सबसे बेहतर होती है। इसके चारे के लिए अलावा गंगा -11, कम्पोजिट मक्का किस्मों की खेती भी की जा सकती है। प्रति एकड़ खेत से आप 160 से 180 क्विंटल हरा चारा प्राप्त कर सकते हैं। बाजरा : हरे चारे के लिए कम्पोजिट बाजरा, जाइन्ट बाजरा, राज-171, नरेन्द्र चारा बाजरा-2, एल-72, एल-74 आदि किस्मों की खेती लाभदायक होती है। प्रति एकड़ भूमि से 160 से 180 क्विंटल हरे चारे की प्राप्ति होती है। इसके अलावा बरसीम, रिजका, जई (जौ) और शहतूत को भी हरे चारे के तौर पर प्रयोग किया जाता है।

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