अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल

अमर शहीद राम प्रसाद बिस्मिल का जन्म ११ जून १८९७ को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम मुरली धर और माता का नाम मूलमती था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा ज्यादातर घर पर ही हुई, उनकी मां ने अंग्रेजी की शिक्षा के लिए प्रेरित किया।उन्हें उर्दू की शिक्षा के लिए मौलवी साहब की सेवाएं दीं। जब वे १८ वर्ष के थे तब आर्य समाज के संपर्क में आये, वहीं से उनके जीवन के उद्देश्य बदल गये। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी भाई परमानन्द, जहां आर्यसमाज और वैदिक धर्म के प्रचारक थे। उन्हें ब्रिटिश सरकार ने 'गदर षड्यंत्र' में शामिल होने के लिए फांसी की सज़ा सुनाई , जो बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया। उन्हीं से प्रेरणा लेकर, राम प्रसाद बिस्मिल ने अंग्रेजी हुकूमत से मुक्ति दिलाने की प्रतिज्ञा की। उन्होंने इस संदर्भ में कविता 'मेरा जन्म' लिखी, जिसे उन्होंने अपने गुरु स्वामी सोमदेव को दिखाया। इसके बाद उन्होंने 'अमेरिका की स्वतंत्रता का इतिहास' नामक एक पुस्तक प्रकाशित की जिसे अंग्रेजी हुकूमत ने प्रकाशित होते ही प्रतिबंधित कर दिया।
बिस्मिल ने अंग्रेजी साम्राज्य वाद से मुक्ति के लिए ' मातृदेवी' नाम के क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की, इस कार्य में उन्होंने औरैया के स्वाधीनता सेनानी पंडित गेंदा लाल दीक्षित की मदद ली। दोनों ने मिलकर इटावा, मैनपुरी, आगरा और शाहजहांपुर जिलों के युवाओं को संगठित किया। जनवरी १९१८ में दिल्ली में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन में ' देशवासियों के नाम पेम्फलेट' बांटा, । प्रतिबंधित साहित्य को बेचने के जुर्म में पुलिस ने छापा मारा पर वे भागने में सफल हो गये। इस दौरान उन्होंने अपना उपन्यास ' बोल्शेविकों की करतूत' लिखा। १९२० में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में वो शाहजहांपुर कांग्रेस कमेटी के अधिकृत सदस्य के रूप में शामिल हुए, वहां लाला लाजपतराय से मुलाकात हुई, जो उनकी लिखी पुस्तकों से बहुत प्रभावित हुए। १९२१ में कांग्रेस के अहमदाबाद अधिवेशन में भाग लिया, हसरत मोहानी के साथ मिलकर कांग्रेस के साधारण सभा में ' पूर्ण स्वराज'' का प्रस्ताव पास कराया। हिंदुस्तान रिपब्लिकन पार्टी को संगठन चलाने के लिए धन की आवश्यकता थी, २५ दिसंबर १९२४ को बमरौली में डकैती डाली गई। ९ अगस्त १९२५ को लखनऊ के पास काकोरी स्टेशन पर सरकारी खजाना लूट लिया, इसमें साथ देने वालों में अशफाक उल्ला खां, चंद्र शेखर आजाद, शचींद्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, मुकुन्दी लाल आदि शामिल थे। २६ सितंबर १९२५ को रामप्रसाद बिस्मिल के साथ ४० से भी अधिक लोगों को 'काकोरी कांड' में गिरफ्तार कर लिया। १९ दिसंबर १९२७ को गोरखपुर जेल में रामप्रसाद बिस्मिल को फांसी दी गई, जेल के बाहर हजारों लोग उनके अंतिम दर्शनों की प्रतीक्षा में थे। उनका अंतिम संस्कार राप्ती नदी के तट पर हुआ। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अग्रिम भूमिका निभाने वाले महान देशभक्त-क्रांतिकारी शहीद राम प्रसाद बिस्मिल जी, की 124वीं जयंती पर शत् शत् नमन🇮🇳

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