बेइन्तेहा मोहब्बत हो गर अपनेआप से

बेइन्तेहा मोहब्बत हो गर अपनेआप से तो ये ना भुल दुनिया मे अकेला नही है तु सब की यही सोच है। 
एक को मारकर दुसरा जिता है यह जानवरों की प्रथा है अब इन्सान की भी होगयी यही सोच है।
खत्म करदी इंसा ने कुदरत की कई नियामते और पेड पौदे नदी नाले बर्बाद करने की सोच है।
पानी हवा रोशनी ही जीवन है ये भुलगाया  इन्सान उसे भी बर्बाद करने की सोच है।
आशफाक खोपेकर

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