हिन्दी राष्ट्रभाषा ही नहीं, जनवाणी भी है

 





हिन्दी दिवस 14 सितम्बर विशेष 

हिन्दी राष्ट्रभाषा ही नहीं, जनवाणी भी है

ललितपुर। हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित परिचर्चा को संबोधित करते हुए नेहरू महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य प्रो. भगवत नारायण शर्मा ने कहा कि अंग्रेजों के दो सौ सालों के औपनिवेशिक शासन को उखाड़ फेंकने में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और शहीदे आजम भगत सिंह के ऐसे हिन्दी में कहे गए शब्द अंग्रेजो भारत छोड़ो तथा इंकलाब जिन्दाबाद आग के गोले बनकर विस्फोटित हुए। वस्तुत: हिन्दी ही अन्याय और उत्पीडऩ के विरुद्ध संघर्ष और प्रतिशोध को विजयान्तक परिणाम तक पहुँचाने के निष्कम्प विश्वास और समरसता पूर्ण माहौल पैदा करने वाली समर्थ भाषा है। इसीलिये भारत माता की एक आँख के रूप में जानी जाती है। भारत माता की दूसरी आँख है समस्त प्रादेशिक भाषाएँ। हमें शिवजी की तरह त्रिनेत्री बनना होगा। अर्थात तीन भाषाएँ सीखनी होगी। अंगेजी सहित तीसरी भाषा यूरोप की कोई भी भाषा हो सकती है, जिससे हम विज्ञान और प्रौद्योगिकी में पीछे न रहें। भाषा का वरदान यदि आदमी को न मिला होता तो रोशनी होते हुए भी वह अँधेरे में होता। जानवरों की तरह। उसकी बस्ती भी गूंगी होती। परन्तु अनुकूल शारीरिक संरचना के कारण जब उसके मुख से शब्द निकले तो वे पुल बन गये और एक-दूसरे से जुड़ते चले गये। आज के इन्टरनेट के डिजिटल युग में हिन्दी की धमाकेदार ऐन्ट्री यूरोप और चीन की मंदारिन भाषा को पीछे छोड़ते हुए विश्व की नंबर वन भाषा की ओर अग्रसर है। प्रत्येक वर्ष हम हिन्दी दिवस के दिन प्राय: अँग्रेजियत के रुतबे को कोसते रहते हैं। कुछ हद तक ठीक भी है परन्तु कोविड-19 के संकट के समय जो स्त्री-पुरुष और बच्चे साधनों के अभाव में खाली पेट-खाली जेब और हाथ में कोरा श्रम लिये हुए दिल्ली, मुंबई से पैदल ही चल पड़े, वे सभी हिन्दी बोलने वाले ही थे। इसलिए जब तक हिन्दी भाषी जनता बेरोजगारी और गरीबी का दंश झेलती रहेगी तब तक संख्याबल में आगे होते हुए उसकी बेकद्री होती रहेगी। अत: अपने संविधान की प्रस्तावना में जिस मानवोचित् गरिमामय जीवन जीने की गारंटी दी गई है उसे 70 साल की आजादी के बाद धरातल पर उतारना ही होगा अन्यथा धूल चेहरे पर थी, और हम आईना साफ करते रहे की तरह लक्ष्यभ्रष्ट होकर गलत निशाना लगाते रहेंगे। यह नहीं भूलना चाहिए कि अँग्रेजों का कारोबार यदि पूरी दुनिया में न फैला होता तो उनकी भाषा का रुतबा भी कमजोर होता। महात्मा तुलसीदास का कथन कितना सटीक है कि का भाषा, का संस्कृत ?, प्रेम चाहिए सांच, काम जो आवे कामरी, का करिलेह कमांच (रेशमी वस्त्र)।

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