आचार्य देवो भवः

 आचार्य देवो भवः ... आचार्य अर्थात गुरु, शिक्षा देनेवाला ,शिक्षक ,ईश्वर के समान होता है।जीवन की यात्रा में समय-समय पर मार्गदर्शन के रूप में अपने सामने खड़ा हो जाता है। एक प्रवाह की तरह जीवन की गति बढ़ती रहती है, और गुरु के रूप में अलग अलग व्यक्ति सामने आते जाते हैं । वैसे तो प्रथम गुरु मांँ होती है, संस्कार परिवार में ही डाले जाते हैं ,परिवार के अन्य सदस्य भी गुरु के रूप में कार्य कर जाते हैं ।मामा दो मांँ है इसमें, मांँ का प्रिय उसका भाई। मेरे जीवन में गुरु की धारा में उन्होंने अहम् भूमिका निभायी।

बचपन से ही हमारे गुरु हमारे मामाजी  थे। हर कार्य में वह हमारा मार्गदर्शन करते थे ।उनका व्यवहार, सीख,और स्वभाव ,बहुत ही मधुर था। उनका व्यक्तित्व ही हमारा गुरु रहा, उन्होंने हमें कॉलेज में भेजा और हमारी शिक्षा पूर्ण की।  हमने बी.एच.एससी किया और नौकरी की। उन्होंने शिक्षा के साथ, नौकरी में भी हमे, बाहरी लोगों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना सिखाया और हमें आदर्श विचारों का व्यक्तित्व प्रदान किया। आज गुरु के रूप में मैं उन्हें लाखों प्रणाम करती हूंँ। 

नौकरी में लगने के बाद, किस्मत से ऐसे दो व्यक्ति मिले, जिन्होंने हमारा पूरा जीवन ही संभाल दिया। वे आज हमारे गुरु के रूप में है ,उनके नाम में गर्व से लिख सकती हूंँ।

पहली है,आ. श्रीमती कुसुम श्रीवास्तवजी और दूसरी सुषमा मोघेजी। "जी 'आज मैं लगा रही हूँ क्योंकी आज वे गुरु के रुप में है। समय-समय पर दोनों ने एक गुरु की तरह मार्गदर्शन किया ,हर कार्य मे मुझे सहयोग दिया,हर सुख दःख में मुझे सम्हाला एवं मार्गदर्शन किया।

          सेवानिवृत्त हुई ,फिर गुरु की आवश्यकता हुई, साहित्य पटल से जुड़ी और लीनाताई और सुधाजी गुरु हो गई। उनके मार्गदर्शन में, मैं फिर आगे बढ़ी।प्रथम गुरु प्रत्येक अवस्था में अलग-अलग रहे। आज मैं प्रत्येक को गुरु के रूप में स्मरण करना  चाहँती हूंँ और गुरु के नाते सब को प्रणाम करती हूंँ। गुरु छोटा हो या बड़ा जो मार्गदर्शन करें ,ज्ञान दें, और निःस्वार्थ भाव से सहयोग दें वही गुरु है।

       शिक्षक दिवस की सभी साथियों को अग्रिम हार्दिक शुभकामनाएँ💐💐🌹🌹🙏🙏🙏


                                                   विजया रिंगे

                                                          बैंगलोर

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