भारतीय ज्ञान परंपरा और राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020-प्रो. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी,( कुलपति, इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय, अमरकंटक, मध्य प्रदेश)




राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ज्ञानार्जन को दिव्य ज्ञान की कोटि तक पहुँचाने का संकल्प लेकर निर्मित है। इसके परिचय भाग के प्रारंभ में ही यह लिखा है कि प्राचीन और सनातन भारतीय ज्ञान और विचार परंपरा के आलोक में यह नीति तैयार की गई है। ज्ञान प्रज्ञा और सत्य की खोज को भारतीय विचार परंपरा और दर्शन में सदा से सर्वोच्च मानवीय लक्ष्य माना गया है। इन लक्ष्यों के समन्वय से शिक्षा का कार्य अंतर्तम को प्रकाशित करना बन जाता है। अर्थात व्यक्ति को अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाना तमसो मा ज्योतिर्गमय यहाँ प्रकाशित होने का मूल तात्पर्य है मानवीय आत्मा को अच्छाई की ओर ले जाना तथा उसे एक श्रेष्ठतम व्यक्ति बनाना।

        इसी तथ्य को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में व्यक्त किया गया है कि प्राचीन भारत में शिक्षा का लक्ष्य जीवन की तैयारी के रूप में ज्ञानार्जन नहीं बल्कि पूर्ण आत्म-ज्ञान और मुक्ति के रूप में माना गया था। ज्ञानार्जन शिक्षा का मुख्य ध्येय है। भारतीय शास्त्रों में एक शब्द आता है-दिव्य ज्ञान इसका भावार्थ है कि शिक्षा के माध्यम से प्रदत्त एवं प्राप्त दिव्य ज्ञान जो मात्र ज्ञान दान नहीं हैइससे कहीं ऊपर है और इसे ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने समग्र शिक्षा का विकास कहकर पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम की दृष्टि से विचार किया है। समग्र शिक्षा अर्थात ऐसी शिक्षा जिससे शिक्षार्थी में संस्कार और सुरुचि का पल्लवन और पोषण किया गया हो, जीवन जीने का ढंग सिखाया गया हो, जो विनयदात्री होविद्या ददाति विनयम और जो मनुष्य को पूर्ण मनुष्यत्व की ओर ले जाए।

        समग्र शिक्षा के विकास का अर्थ है विद्यार्थी की अवधारणात्मक समझ पर जोर देना  कि रटंत विद्या पर, जिससे कि रचनात्मकता और तार्किक सोच की क्षमता शिक्षार्थी में पैदा की जा सके। साथ ही यह नई शिक्षा नीति समग्र शिक्षा के विकासक्रम के लिए नैतिकता एवं मानवीयता के भारतीय मूलाधारों को भी शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने के लिए संकल्पबद्ध है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रारूप में सहानुभूति, दूसरों के लिए सम्मान, स्वच्छता, शिष्टाचार, लोकतांत्रिक भावना, सेवा की भावना का विवेचन ही नहीं, विद्यार्थी के समग्र विकास में इनके योगदान को भी भिन्न-भिन्न स्थलों पर रेखांकित किया गया है। शिक्षार्थी में बहुआयामी मेधा का विस्तार करने के लिए शिक्षा नीति के प्रारूप में संगीत, स्वच्छता, व्यायाम और योगाभ्यास आदि का भी समावेश गया है। ये मेधाएँ स्वतः अपने आप में रचनात्मक भी हैं और मूल्यपरक भी। जिस रचनात्मकता के विकास की बात इस नीति में कही गई है उसका उद्देश्य है विद्यार्थी की सहज जिज्ञासा को प्रोत्साहन देना और इस जिज्ञासा के माध्यम से उसकी संवेदन शक्ति तथा प्रत्यक्षीकरण की प्रतिभा को विकसित करना। नवीन शिक्षा नीति में इस बात का बार-बार उल्लेख किया गया है कि सृजनात्मक एवं रचनात्मक क्रियाओं द्वारा शिक्षार्थी की कल्पनाशक्ति को उर्वर बनाया जा सकता है। इस उर्वरता को फलीभूत करने की प्रक्रिया में ज्ञान को थोपना नहीं अपितु उसे क्रियाशील बनाकर शिक्षार्थी में ऐसी चेतना का विकास करना है कि उसके भाषायी कौशलप्रकृति बोध, नैतिकता का भाव और सामाजिकता की मेधा स्वतः अपना आकार लेने लगे। शिक्षाशास्त्र में इस समन्वित शैक्षिक गतिविधि को ‘समग्र अवलोकन विधि’ कहा गया है और इन्हें भिन्न-भिन्न शैक्षिक धरातलों पर राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में समाविष्ट किया गया है।

सहानुभूति का पक्ष अंततः भारतीय चिंतन के केंद्रबिंदु सूत्र ‘वसुधैव कुटुंबकम तक विस्तार पाता है। इसी से विद्यार्थी अपनी जड़ों से जुड़े रहकर विश्व नागरिक बन सकेगा। सहानुभूति की भावना का विकास व्यक्ति से शुरू होकर विश्व तक की एकात्मकता तक विस्तीर्ण हो जाता है। हम मिलकर चलें (संगच्छध्वम) और मिलकर बोलें (संवदध्वम) का विचार ही परस्पर प्रेम की भावना का प्रसार कर देता है। इससे एकता और संगठन का भाव भी प्रबल होता है।

        भारतीय ज्ञान परंपरा का यह दृढ़ विश्वास है कि स्व-अनुशासन के माध्यम से ही स्वाभिमान जागृत होता है। स्व-अनुशासन जब निजता की पहचान’ करवाता है तो आत्म-गौरव स्वतः जागृत हो उठता है। यही आत्मविश्वास मनुष्य को आत्मनिर्भरता के विविध सोपानों की ओर अग्रसर करता है। आत्मनिर्भर भारत के महती लक्ष्य की प्राप्ति का राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 एक सुचिंतित प्रारूप है। इसीलिए नई शिक्षा नीति में यह माना गया है कि शिक्षा संस्कृति का ही एक अनिवार्य अंग है। हमारी संस्कृति हमें बहुत कुछ मूल्यवान प्रदान करती है। शिक्षा नीति का बल इसीलिए अनौपचारिक शिक्षा पर भी है और वाचिक परंपरा पर भी। यह दो ध्रुवों को साधनेवाली नीति है जो परंपरा की शिक्षा और शिक्षा की परंपरा दोनों को साथ लेकर चलती है।

        राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में विषयगत शिक्षा तथा बोधपरक शिक्षा के निहित भेदों को पहचानते हुए एक संतुलित प्रारूप का निर्माण किया है। बोधपरक शिक्षा का अर्थ है विद्यार्थी में स्वाध्याय, स्वचिंतन और स्वविवेक का विकास करना। इस संबंध में ध्यातव्य है कि हममें से अधिकांश के लिए शिक्षा का अर्थ यह सीखना है कि हम क्या सोचें’। जबकि शिक्षा का अर्थ होना चाहिए कि हमें कैसे सोचना चाहिए यही वास्तव में ‘सम्यक शिक्षा है जो हमें जीवंत मानव बनाती है।

        यह अखिल भारतीय शिक्षा समागम काशी में हो रहा है इसलिए ध्यातव्य कि महामना मदनमोहन मालवीय ने बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में शिक्षा की पाठ्यचर्या और पाठ्यक्रम में संस्कृत भाषा के ज्ञान, मातृभाषाओं के महत्व, साहित्य, धर्म और दर्शन की शिक्षा, कृषि और कला-कौशल की शिक्षा, आयुर्वेदिक शिक्षा पद्धति की शिक्षा तथा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक क्रियाओं की शिक्षा को केंद्रीय स्थान दिया था। उनका मानना था कि हमारे व्यक्तित्व में अखंडता और पूर्णता तभी  सकती है जब हम भारत को जानें, समझें और उसे अपनी आत्मा का अभिन्न अंग बना लें। नई शिक्षा नीति ‘भारतीय’ होने का भावार्थ व्यक्त करती है। उसकी यह उद्घोषणा विचारणीय है कि समग्र और शिक्षार्थी केंद्रित शिक्षा जिसकी जड़ें भारतीय संस्कृति में रोपी गई हों वह विश्व के समक्ष भारतीय मेधा को अपनी आब और अस्मिता के साथ प्रस्तुत कर पाने का एकमात्र मार्ग है।

        राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 ने भारत की लोक परंपरा को भी महत्व दिया है। इसमें साहित्यसंगीतकलाफिल्म आदि को पाठ्यचर्या का हिस्सा बनाने की उद्घोषणा है। भारतीय परंपरा ‘शास्त्र’ और ‘लोक’ को समान महत्व देती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में वे सभी तत्व समाहित हैं जिनका संकल्प लेकर हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी पूरे विश्व को संबोधित करते रहे हैं। ज्ञान, बोध और प्रज्ञा के समस्त भारतीय अवयव राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में निहित हैं। लुप्तप्राय भाषाओं, संस्कृत भाषा तथा भारतीय शिक्षा परंपरा को गति प्रदान करने वाली यह शिक्षा नीति माननीय प्रधानमंत्री जी के इन सूत्रों की व्याख्या है -सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के क्रियान्वयन से भारत को शिक्षित, सुविज्ञ, स्वस्थ, संपन्न, सशक्त, समर्थ एवं आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने तथा ज्ञान की दुनिया की महाशक्ति बनाने की माननीय प्रधानमंत्री जी का संकल्प अवश्य ही सिद्ध होगा।


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