बेरोज़गारी का अन्त सम्भव है



अंग्रेज़ों के समय बेरोज़गारों की संख्या काफ़ी कम थी ।आवादी कम होने के कारण प्राय: हर व्यक्ति को नौकरी कही न कही मिल ही जाती थी हमें याद है मेरे पिता जो रेलवे मे एक अधिकारी थे सन १९६२ मे रेलवे से अवकाश होने के पहले कम से कम ५ हज़ार से ज़्यादा लोगों को घर से बुला बुला कर नौकरी मे रखवा चुके थे ।आज कोई अफ़सर   सीधे   रखवा कर दिखा दे  ।यूनियन वाले ही खड़े हो जाएँगे कहेंगे अपने आदमी को रखा है तो मेरे भी कुछ आदमियों को एडजेसट करो वरना झंडा उँचा रहेगा हमारा । अंग्रेज़ जब हिनदूसतान आए तो उनकी यहाँ पर संख्या काफ़ी कम थी उन्होंने  अपनी तीमारदारी के लिए ढेर सारे भारतीय की भरती की ।अपनी सेना मे भी हम हिनदूसतानीयो की लाखों मे भरती की ताकि वह अपने ही भारतीय को काट मार सके ।अनपढ़ भी काफ़ी अधिक संख्या मे रोज़गार पा जाते थे ।आज जब देश की आवादी कई गुना बढ़ चुकी है शिक्षा के प्रति लोगों की जागरूकता बढ़ रही है वही दूसरी तरफ सरकारी नौकरी सीमित होती जा रही है  ।हर कोई सरकारी नौकरी की तरफ दौड़ रहा है ।बेटी के बाप को भी चाहिए  सरकारी नौकर वाला दामाद ।सरकारी नौकरी मे हरामखोरी मटटरगशती कुछ ज़्यादा ही है । सरकार को भी इस सरकारी नौकरी वाले दामाद को यदिनिकालने का मन हो तो  तमाम पापड़ बेलने पड़ सकते है जब कि प्राइवेट नौकरी वाले बेचारे मेहनत भी करे गालीयाँ भी खाए और वेतन भी कम पाए ।समय के बदलते हुए स्वरूप को देखते हुए शिक्षा के उद्देश्य और स्वरूप मे असाधारण परिवर्तन की आवशकता है ।सरकारी और ग़ैर सरकारी नौकरियों का क्षेत्र समिति मानकर शिक्षा क्षेत्र से जुड़ने वाले हर छात्र और उनके अभिभावको को यह सोचना होगा कि नौकरी के लिए शिक्षा वाले दशटीकोण मे परिवर्तन की आवशकता है ।अंग्रेज़ों के जाने के बाद न तो उनके ज़माने की आवशकता ही रही न ही वह दरशटीकोण बनाए रखने का कोई तुक ही है ।ज्ञानवर्द्धि की दरशटी से जितना पढ़ने का अवसर मिले उतना अच्छा है पर यदि उसे अाजीविका से जोड़ना हो तो यह समझ कर चलना चाहिए कि हर शिक्षित को इन दिनों नाैकरी मिलना असंभव है ।यह बात काफ़ी समय गँवा देने और बहुत साधन ख़र्च करने के बाद पहले से ही समझ मे आ जाए  तो अच्छा है । यह भी सोच लेना चाहिए कि शिक्षा ग्रहण करने के बाद भी नौकरी यदि नही मिली तो अारथोपाजन के लिए क्या किया जाना चाहिए ।कोई भी सरकार इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश मे हर एक को रोज़गार नही दे सकती ।बेरोज़गारी हर साल बढ़नी ही है एेसी सिथित मे केवल कुटीर उधोगो का क्षेत्र ही बचा है जहाँ लाखों की संख्या मे रोज़गार उपलब्ध कराए जा सकते है यदि इन कुटीर उधोगो को कच्चा माल उनके क्षेत्र मे उपलब्ध हो और सस्ते रेट पर मिले तो यह उधोग काफ़ी रोज़गार के अवसर पैदा कर सकते है हर बड़े औधोधिग प्रतिष्ठान को अपनी ज़रूरत के समान के उत्पादन के लिए छोटी छोटी उत्पादन ईकाईयो को महत्व देना चाहिए ताकि और लोगों को अवसर मिले ।कुटीर उधोगो को यदि सुनियोजित ढंग से अपनाया जाए और शिक्षा तन्त्र के साथ उनका समन्वय किया जाए तो शिक्षकों की बेकारी वाली समस्या से कुछ हद तक निजात मिल सकती है ।

आनंद मोहन भटनागर

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