पथरीला सोना का सोना मिला



अमित गुप्ता एवं बिना चिक बड़ाईक द्वारा संपादित पुस्तक "रामदेव धुरंधर कृत : पथरीला सोना में भारतीय मजदूरों और उनकी संतानो का यथार्थ चित्रण में "पथरीला सोना : भारत से मारीशस पहुचे मजदूरों और उनकी संतानो के जीवन से जुडा अमिट दस्तावेज "

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    वैसे तो हिंदी गद्य साहित्य के अनेकों साहित्यकारों एवं उनकी कृतियों को पढ़ने और उसपर अपने विचार रखने अथवा उनकी कृतियों या उन कृतियों के अंशो पर अपने समीक्षा आलेख को लिखने का मुझे मन भी होता है या मैंने लिखा भी है, पर अपने पसंदीदा साहित्यकार श्री रामदेव धुरंधर ( मारीशस ) की रचनाओं को पढ़ने लिखने की उत्सुकता मेरे मन में प्रारम्भ से होती रही है l विशेष रूप से रामदेव धुरंधर जी के ऐतिहासिक उपन्यास पथरीला सोना को  मैंने ना सिर्फ मैंने खूब पढ़ा है बल्कि उस पर जम कर खूब लिखा भी है l वैसे फेसबुक पर तो मैंने पथरीला सोना पर लिखा ही लिखा, लेकिन डा. दीपक पाण्डेय एवं डा. नूतन पाण्डेय द्वय द्वारा संपादित पुस्तक "रामदेव धुरंधर की रचनाधर्मिता " पर मैंने एक बड़ी वृहद् एवं विसद समीक्षा लिखी l यह समीक्षा कई अंको के साथ कई पत्र पत्रिकाओं में छपी भी l हालांकि मै यथार्थ की अनदेखी कभी नही कर सका, इसलिये आज भी कहता हूँ कि इन समीक्षाओं को पत्रिकाओं में छपने का श्रेय डा. पाण्डेय दम्पति को ही जाता है l मुझे ना ही कोई पत्र पत्रिका का संपादक जानता ही है ना ही मुझे साहित्यकार ही मानता है l खैर यह मेरे लिये कोई बड़ी बात नही है l मेरे लिये बड़ी बात यह है कि मैंने पथरीला सोना खूब लिखा है l कुछ एक पुस्तकों में छपी भी l

जैसे डा. दीपक पाण्डेय एवं डा. नूतन पाण्डेय जी द्वारा संपादित पुस्तक रामदेव की रचना धर्मिता में l पुनः अमित कुमार एवं ज्योति कुशवाहा द्वारा संपादित पुस्तक "भारतीय संस्कृति के उन्नयन में प्रवासी साहित्यकार " में श्री रामदेव धुरंदर जी द्वारा रचित ऐतिहासिक उपन्यास पथरीला सोना खंड दो के कुछ अंश की भावात्मक समीक्षा शीर्षक से मेरा आलेख छपा l

आज पुनः मुझे एक बार फिर बड़ी आत्मिक ख़ुशी हुई, जब पथरीला सोना पर ही मेरा एक आलेख अमित गुप्ता एवं बिना चिक बड़ाईक द्वारा संपादित पुस्तक "रामदेव धुरंधर कृत : पथरीला सोना में भारतीय मजदूरों और उनकी संतानो का यथार्थ चित्रण में "पथरीला सोना : भारत से मारीशस पहुचे मजदूरों और उनकी संतानो के जीवन से जुडा अमिट दस्तावेज " शीर्षक से छपा l

  आज जब हमारे लोकल पोस्ट आफिस का डाकिया इस पुस्तक को लेकर मेरे आवास पंहुचा तो मेरे मन की उत्कंठा अपने ही लिखे लेख को पुनः पढ़ने के लिये व्यग्र हो उठी, मानों इस लेख को जैसे मैंने आज ही लिखा हो l आखिर मेरी व्यग्रता बढे क्यों न, जो मैंने पथरीला सोना पर अपना आलेख लिखा है l


©®राजेश कुमार सिंह

लखनऊ, उप्र

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