गा लेते हैं-डॉ एम डी सिंह




सुख को कहीं भगा देते हैं
चलिए दुख को गा लेते हैं

भीड़ भरे एकाकीपन को
शांत चुप कोलाहली मन को
भरा हुआ जो नीरवता से
उस अनहद बातूनी छन को

अपने लिए मंगा लेते हैं
चलिए दुख को गा लेते हैं

ह्रदय सहज ना जहां धड़कता
पथिक जहाँ ना राह भटकता
पानी पानी सब बेपानी 
घूंट घूंट को प्यास खटकता

सर पर धूप उगा लेते हैं
चलिए दुख को गा लेते हैं

पीड़ा सर पर आ बैठी है
घृणा आंखों में पैठी है
मित्र मौत का है सहयोगी
खुशी गला उतार ऐंठो है

सपनो को सुलगा लेते हैं 
चलिए दुख तो गा लेते हैं

कठिनाई में है मानवता
अंगड़ाई लेती दानवता
अंधभक्ति में सने हुए सभी
खुले केश बैठी ज्ञानवता 

घर में आग लगा लेते हैं
चलिए दुख को गा लेते हैं

डॉ एम डी सिंह

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