प्रेमावतार के पावन जन्मोत्सव / क्रिसमस / विशेष

स्वयं ईसा ने अपने बारे में कहा है : " लोमड़ियों के माँद होती है , नभचारी खगकुल अपने नीड़ में निवास करते हैं , पर मानवपुत्र (ईसा) के पास अपना सिर ढकने तक के लिए स्थान नहीं है ।" ईसा की शिक्षा भी यही है :इसके अलावा मुक्ति का और कोई पंथ नहीं है । यदि हममें इस मार्ग पर चलने की क्षमता नहीं है तो हमें मुख में तिनका धारण कर विनीत भाव से अपनी दुर्बलता स्वीकार कर लेना चाहिए कि 'मैं' और 'मेरे' के प्रति ममत्व है , हमारे मन , हममें धन और ऐश्वर्य के प्रति आसक्ति है । हमें धिक्कार है कि इस सच्चाई को स्वीकार करने का हमारे अन्दर साहस नहीं है । उनका मानना था कि जिन्हें बड़ा आदमी बनने की लालसा है , वे निर्दोष कैसे रह सकते हैं । उनकी सर्वविदित घोषणा है कि " सुई के छेद में से ऊँट तो निकल सकता है , ईश्वरीय राज्य के द्वार पापाचार से कमाये गए धनपति के लिए हमेशा बंद ही मिलेंगे । उन्हें सूली पर लटकाते समय उद्गार थे , कि हे प्रभु , उन्हें क्षमा करना , जो यह नही जान रहे हैं कि वे क्या कर रहे हैं । " देह में अवस्थित हो वे मानव जाति के कल्याण के लिए देह का परिचालन कर रहे थे । देह के साथ उनका मात्र यही लगाव था । वे कहते थे आत्मा लिंगविहीन है । अत: भेदभाव करना सर्वथा अनुचित है । वे वास्तव में विदेह , शुद्धबुद्ध मुक्त आत्मस्वरूप हैं । नि:सन्देह वे अनंत ज्योतिस्वरूप ब्रह्म के प्रकाशदूत हैं । उनका मानना था , मैं " अपने पिता में हूं , तुम मुझमें हो । तुम सब परमात्मा हो । कितनी सरल -निश्च्छल शिशु जैसी वाणी है । यदि किसी ने तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारा है तो दूसरा गाल भी उसकी ओर कर दो " । " अपना सर्वस्व त्याग कर गरीबों में बाँट दो "
प्रो. भगवत नारायण शर्मा

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