जग बीमार है
जग बीमार है :
जग बीमार है
मग बीमार है
चलता नहीं अब
पग बीमार है
मन माणिक कहीं
मन वांणिक कहीं
उहा-पोह लिए
मन प्रांणिक कहीं
है कंचन आकुल
नग बीमार है
बैठे मन मार
यहां वहां यार
गया चला किधर
किशन बंशी हार
सभी ढूंढ रहे
ठग बीमार है
दिन सोया है
रात जगी हुई
बर्फ जमी है
आग लगी हुई
धड़कता है दिल
रग बीमार है
डॉ एम डी सिंह