जयंती विशेष / महामना पं मदनमोहन मालवीय
महामना पं मदनमोहन मालवीय जी का व्यक्तित्व हिमालय से भी ऊँचा और सागर से भी विशाल था
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प्रखर राष्ट्रभक्त , स्वाधीनता सेनानी , सजग पत्रकार , कुशल अधिवक्ता श्रीमद्भागवत महापुराण एवं वेद-वेदान्तपाठी महामना पं मदनमोहन मालवीय जी का स्मरण करने पर काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के शिल्पी की महानता और उनके द्वारा संस्थापित शिक्षा संस्थान की उस विशालता का चित्र आँखों में नाच उठता है कि जिसकी पक्की सड़कों की लंबाई 30 किमी. से भी ज्यादा है ।
आज से लगभग सौ साल पहले इस महान राष्ट्र विभूति ने जन-जन से पराधीन भारत में एक सिरे से दूसरे शहर तक घूम-घूमकर उस समय एक करोड़ साठ लाख का दान लेकर भारत की उत्कृष्ट यूनिवर्सिटी अपने अपराजेय मनोबल से स्वदेशी क्षेत्र में राष्ट्रभाषा हिन्दी माध्यम से खोल दी । यह विॆश्वविद्यालय मात्र अपने भवन , विज्ञान , इन्जीनियरिंग , कला , दर्शन की पढ़ाई-लिखाई से भी ज्यादा इसलिए जाना जाता है कि जैसे 2500 साल पहले काशी से ही बौद्ध धर्म का धर्मचक्र प्रवर्तन चला , वैसे ही 22 साल तक दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष चलाकर गांधीजी की सत्य , अहिंसा और सत्याग्रह के अमोघ अस्त्र लेकर जब स्वदेश लौटे तब बी. एच. यू. के शुभारम्भ महोत्सव के मौके पर गाँधीजी ने इतना विप्लवकारी उद्बोधन किया कि जिसे सुनकर अध्यक्षता कर रहा अँग्रेज वायसराय तिलमिला उठा । गांधीजी को बोलने से रोका गया पर जनता एक स्वर में चिल्ला उठी , बोलते रहिए । भारत के स्वाधीनता संग्राम में उक्त क्षण मील का पत्थर साबित हुआ ।
महामना मालवीय ऐसे हिन्दुत्व के प्रतिपादक थे जो धर्म समभाव का पोषक , सर्वसमावेशी मानव धर्म के रूप में जाना जाता है ।
- प्रो. भगवत नारायण शर्मा
पूर्व प्राचार्य
नेहरू महाविद्यालय ललितपुर