जातिवाद भारत के लिए जहर पर राजनीति के लिए अमृत

लेखक - राजकुमार बरूआ भोपाल
जाति न पूछो साधु की पूछ लीजिए ज्ञान!
मोल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान!
हम सब भारतीय हैं हमारे यहां भूमि को माता का स्थान दिया गया है, इसलिए हम सब एक ही माता की संताने जब हम सब एक ही माता की संताने हैं तो हम में जातिवाद केसा, भारत की संस्कृति अति प्राचीन है हमारे यहां समय-समय पर कई महापुरुषों ने जन्म लिया है जिन के बताए हुए मार्ग पर चलकर ही हम आज के वर्तमान दौर तक पहुंच पाऐ हैं, अति प्राचीन संस्कृति होने के साथ हम भारतीयों का जो मूल्य भाव है वासुदेव कुटुंबकम, हम सब को जोड़कर चलने की बात करते हैं। पर हमारे यहां जातिवाद का भी बड़ा बोलबाला है पर मेरी नजरों में जातिवाद दो प्रकार का है, एक वह जिसको लोग धर्म से जोड़कर देखते हैं और एक वह जातिवाद है जो राजनीति दलों के द्वारा बनाया गया है,वह जिसको लगभग सभी राजनीतिक दल समय-समय पर इस्तेमाल करके अपनी राजनीति की रोटियां सेकते रहते हैं, भारत को देवभूमि कहा जाता है, हमारे तो भगवान राम ने भी माता शबरी के झूठे बेर खाए हैं केवट को अपना भाई बताया है, तो हमारे शास्त्रों में तो जातिवाद नहीं है लेकिन धार्मिक पुस्तक में जातिवाद दिखता है क्योंकि इनको तो किसी मनुष्य द्वारा लिखा गया है उसका दृष्टिकोण जातिवाद के लिए अलग रहा हो पर यहां उस व्यक्ति का दृष्टिकोण हो सकता है पूरे समाज का नहीं। तो यह कहना कि धर्म के आधार पर जातिवाद है मैं इसको नहीं मानता, हां कई घटनाएं हम देखते भी हैं सुनते भी हैं अब तो डिजिटल मीडिया का जमाना है तो बहुत कुछ देखने को भी आता है कि जातिवाद के नाम पर कुछ लोग धर्म को भी तोड़ने की कोशिश करते हैं पर उनकी या कोशिश कुछ हद तक ही कामयाब होती हैं, हमारे सनातन धर्म में तो सभी को एक ही बराबर का दर्जा दिया गया, हम ज्ञान के और काम के आधार पर जरूर बटे हुए हैं पर यह व्यवस्था है ना कि भेदभाव, लोग अपने काम के हिसाब से अपनी जाति को देखने लगे थे या यूं भी कह सकते हैं कि उनको काम के हिसाब से जातियों में बांट दिया गया था जिसको वर्ण व्यवस्था कहते हैं, पर वर्तमान में किसी भी व्यक्ति की जाति आप उसके व्यवसाय के हिसाब से तय नहीं कर सकते, अब तो आपका काम ही आपकी पहचान बनता है। हम भारतीयों की पहचान दुनिया में हमारी संस्कृतिक विरासत के लिए की जाती है, हमारे यहां कई महान महापुरुषों गुरूओ और संतों ने जन्म लिया है और सभी ने लगभग एक ही बात कही है, की हम सब में आत्मा एक ही है, और हम सब एक ही ईश्वर की संतान हैं, तो हम सब तो भाई-भाई हुए ना तो अंतर्विरोध करना महापाप हो गया। गांधी जी ने भी छुआछूत मिटाने के लिए कई अभियान चलाकर इस सामाजिक बुराई को खत्म करने के लिए जीवन भर काम किया गांधी जी ने ही छुआछूत मिट सके इसीलिए हरिजन शब्द से संबोधन कर सभी को बराबर का दर्जा देने की कोशिश की मंदिरों में जाने का अधिकार दिलवाया और भी कई महापुरुष हुए हैं जिन्होंने जातिवाद को मानवता के लिए कलंक माना, प्रखर राष्ट्रवादी वीर सावरकर जी ने भी जातिवाद को राष्ट्र के लिए सबसे बड़ा खतरा माना और जातिवाद को खत्म करने के लिए ही मुंबई में पतित पावन मंदिर की स्थापना की, एक महान समाज सुधार की भूमिका के साथ ही में राष्ट्रवाद के लिए अपना संपूर्ण जीवन राष्ट्र को समर्पित किया।"संविधान में भी जाति और धर्म अलग अलग है" पर हमेशा से ही राजनीति ने लोगों को जातिवाद में बाटकर अपने राजनीतिक स्वार्थ को पूरा करने के लिए देश की एकता की भावना को नुकसान पहुंचाया है और इसके कई दुष्परिणाम भी हमारे देश ने भोगे हैं, राजनीति के कारण ही जातिवाद का बोलबाला है अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए राजनीतिक दल देश की आत्मा से भी खिलवाड़ करने से नहीं चूकते हैं, अपनी राजनीतिक रोटियां सेकने के लिए देश में हमेशा विरोध की भावना को प्रबल करना इनका काम है राजनीति वर्तमान दौर में भी वही अपने पुराने डग पर चली आ रही है जातियों और समुदायों में बांट कर लोगों को राजनीतिक लाभ देने का प्रलोभन देकर उनमें आपसी फूट बनाए रखना कई राजनीतिक दल सिर्फ और सिर्फ जातिवाद की ही राजनीति करते हैं जिसके कारण हमारी एकता की भावनाओं को बहुत बड़ी छति होती है, जो व्यक्ति जाति की राजनीति करता है उसको भी राजनीतिक पार्टियां अपने सिर माथे पर बिठाती हैं अपने दल में विशेष स्थान देती हैं और उनकी नाजायज मांगों तक को पूरा करने का काम भी करती है, धर्म लोगों को जोड़ता है ईश्वर एक है इसकी बात करता है पर राजनीति के कारण लोगों में आज भी जातिवाद अपनी जड़े जमाऐ हुआ है जो चुनावों के समय आतंक का रूप ले लेता है। वरिष्ठ साहित्यकार राजेंद्र शर्मा जी अक्षर कहते हैं जातिवाद को खत्म करने के लिए हर मंदिर में भगवान बुद्ध गुरु नानक देव और महावीर स्वामी की मूर्ति स्थापित करना चाहिए जिससे सभी धर्मों को मानने वाले लोग एक ही जगह पर आकर पूजा अर्चना कर सकें और उनमें भाईचारा बड़े, वर्तमान समय में भी हम जाति के बारे में बात करते हैं तो हमारा ध्यान उन छोटी जगहो और गांव की तरफ चला जाता है जहां पर जातिवाद आज भी एक बीमारी की तौर पर भयंकर रूप से फैला हुआ है पर शिक्षा ने जातिवाद को बहुत हद तक खत्म किया है आज किसी भी बड़े शहर में आप रहते हो या किसी से मिलते हो तो जाति के बारे में बात होती ही नहीं सब काम के बारे में बात करते हैं अब तो शादी ब्याह के मामले में भी शहरों में, जाति में ही शादी करेंगे ऐसा जरूरी नहीं माना जाता एक दूसरे को परिवार वाले मिलकर पसंद करते हैं और शिक्षा और व्यवसाय के हिसाब से शादियों की व्यवस्था करते हैं। प्रसिद्ध रंगकर्मी और निर्देशक संजय मेहता जी कहते हैं कि जातिवाद को मिटाने के लिए रंगमंच के द्वारा महान संतों की जीवनी को नाटक के द्वारा लोगों को दिखाया जाए और उनको अपनी संत परंपरा और धर्म से जोड़कर जाति पात को मिटाया जा सकता है, शिक्षा के द्वारा ही इस जातिवाद रूपी आतंक का अंत हो सकता है इसीलिए सरकारों को चाहिए के ज्यादा ज्यादा शिक्षा को सरल बनाकर लोगों तक पहुंचा कर उन में समानता की भावनाओं को जगाएं और पाठ्यपुस्तक में भी ऐसे महान लोगों का प्रचार प्रसार करें जिन्होंने जातिवाद को मिटाने के लिए अपना संपूर्ण जीवन समर्पित किया।
"ना दल ना बाल शिक्षा ही है हल"

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