आप अंधविश्वास के विरुद्ध हैं या धीरेन्द्र-शास्त्री के विरुद्ध???

(कृपया तस्वीर देखने से पहले पोस्ट पढ़ लें!) जिसे नहीं पता,पहले ही बता दूँ कि मैं एक एमबीबीएस डॉक्टर होने के नाते वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखती हूँ और अंधविश्वास के विरुद्ध हूँ! लेकिन इसका अर्थ ये नहीं कि मैं अपनी जागरुकता त्याग दूँ! हर जगह हर तरह के लोग होते हैं! यदि धर्म की आड़ ले कर कुछ लोग लोगों को ठगते हैं तो क्या विज्ञान की आड़ ले कर नहीं ठगते? क्या कुछ लोगों द्वारा चिकित्सा के क्षेत्र में रोगियों को नहीं ठगा जाता?
एक रोगी अपने चिकित्सक पर विश्वास करता है!
जब हम प्लेन में बैठते हैं तो पायलट पर विश्वास करते हैं!
जब हम ट्रेन में बैठते हैं तो ड्राइवर पर विश्वास करते हैं!
हम अपने बैंक पर विश्वास करते हैं, अपने मित्रों पर विश्वास करते हैं, विवाह पर विश्वास करते हैं!
सब काम विश्वास पर ही चलते हैं! विश्वास टूटता है, कुछ ग़लत होता है तो वही विश्वास अंधविश्वास बन जाता है! सच बात तो यह है कि बिना जागरुकता के किया गया विश्वास ही अंधविश्वास है और यह सही जानकारी के अभाव में और अपनी अंतर्चेतना को प्रसुप्त रखने के कारण होता है और कभी-कभी आप अपना भाग्य या प्रारब्ध भी कह सकते हैं!
अंधविश्वास, जिस विश्वास के चलते लोगों का नुक़सान होता है, उन्हें और अधिक दुःख की ओर धकेला जाता है, मैं उसके विरुद्ध हूँ! जैसे, इलाज़ के नाम पर कुछ भी करके रोग को बढ़ा देना, चामत्कारिक होने का दावा करके किसी की मेहनत की कमाई ऐंठ लेना या गारण्टी के नाम पर किसी के अज्ञान का फ़ायदा उठाना!
इससे बचने का एक ही उपाय है, जागरूकता के साथ विश्वास करना ताकि विश्वासघात की आशंका कम हो जाए! इसके कोई निश्चित समीकरण तो हैं नहीं, जागरुकता और अंतर्चेतना की सक्रियता ही काम कर सकती है! इन्हें ही बढ़ाना होगा!
यदि किसी पर विश्वास किया जाए और उस विश्वास की रक्षा वो करे जिस पर विश्वास किया जा रहा है और उस विश्वास का परिणाम यह हो कि विश्वास करने वाले व्यक्ति का जीवन बेहतर हो तो ऐसे में एक प्यारा-सा झूठ भी मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मक प्रभाव डालता है! हम भी अपने रोगियों से एकदम से नहीं कहते कि तुम्हें एक गंभीर बीमारी है! क्या पता कौन बीमारी से नहीं सदमे या अवसाद से मृत्यु की ओर अग्रसर हो जाए! इसलिए व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है और सभी अपनी-अपनी सोच रखते हैं! अपने आराध्य के प्रति आस्था, अपने प्रेम के प्रति आस्था ये सब जीवन के प्रतिनिधि हैं!
अब बात आती है धीरेन्द्र शास्त्री की! मैं उनके किसी भी ऐसे कृत्य के समर्थन में नहीं हूँ जो अंधविश्वास फैला कर लोगों का जीवन बर्बाद कर रहा है! उन्हें जोशीमठ की दरारें भरने जैसी हास्यापद चुनौतियां ( जिसमें कि हमारे वैज्ञानिक तक असमर्थ हैं! ) देने के बजाय उनके कार्यों का विवेचनात्मक विश्लेषण किया जाए कि लोगों के जीवन पर उनका प्रभाव सकारात्मक है या नकारात्मक? यदि उनके कृत्यों से लोगों के जीवन में दुःख फैल रहा है, उनके दावों से लोगों की स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ रही हैं तो एक अकेले शास्त्री क्यों?
आप अंधविश्वास के विरुद्ध हैं या धीरेन्द्र-शास्त्री के विरुद्ध???
आज होती घटनाओं से व्यक्तिगत रूप से मुझे यही प्रतीत होता है कि वातावरण धीरेन्द्र शास्त्री के विरुद्ध है, न कि अंधविश्वास के विरुद्ध जो कि मैंने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा है! उनकी प्रसिद्धि ही उनके विरोध के स्वर उठा रही है! वर्ना अंधविश्वास फैलाने वाले हर बाबा, मौलवी और पादरी को निर्मूलन समितियां सामने ला कर क्यों नहीं सब अंधविश्वासों का समूल नाश करतीं?
एक चिकित्सक के रूप में अंधविश्वासों के परिणाम दो दशक से भी अधिक देखती आ रही हूँ और आज तक देश में कोई सक्रियता नहीं देखी कि धर्म से परे अंधविश्वास मिटाने की कोई मुहिम चल रही हो!
मैं अंधविश्वास के निर्मूलन के साथ हूँ लेकिन इस दोगलेपन के साथ नहीं हूँ! यदि चुनिंदा है, सिलेक्टिव है तो मंशा संशय के घेरे में आएगी ही कि अंधविश्वास का उन्मूलन करना है या किसी की प्रसिद्धि का?
मेरी पोस्ट पर सभ्य भाषा वाले ही आएं! मात्र स्पष्ट और गरिमापूर्ण वार्तालाप का ही स्वागत रहेगा!
डॉ. भावना चोपड़ा आरोही
चिकित्सक, गीतकार
डॉ. भावना चोपड़ा आरोही की फेसबुक बाल से साभार

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