खर्राटों का सफर
आमतौर पर हम रात में
चार छः आठ घंटे सोते हैं
दरअसल वह हमारी नहीं
नींद की आरामगाह है
जिसमें हम भी
शरीक होते हैं
वैसे गौरतलब यह कि
चंद निद्राहीनों को छोड़
अपने मुल्क शहर गांव में
चौबीसों घंटे सोने वाले ही
काबिज हैं दिन-रात पर
तंद्रा में खुसुर-फुसुर करते
गाल हाथ सीने ललाट पर
मच्छर मार जम्हाई लेते
लोगों की जमात के
जिनमें कभी नींद शरीक नहीं होती
सपने चोरी होने से
बौखलाए लोग
अक्सर नींद से आंख बंद होने का
सबूत मांगते पक्ष के
चुनिंदा फरीक होते हैं
समय की हत्या में शामिल
लोगों के नाम
समन जारी कर
अदालत भी सो जाती है
खर्राटों का सफर जारी रहता है-------
डॉ एम डी सिंह