"अर्थपूर्ण संदर्भों में शब्द-पठन"

प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों के सार्वभौमिक मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान का बोध कराने के उद्देश्य से राष्ट्रव्यापी कार्यक्रम - "निपुण भारत मिशन" संचालित है।जिसके तहत बालवाटिका से कक्षा-3 तक के बच्चों हेतु निपुण-लक्ष्य के रूप में भाषा और गणित के लर्निंग आउटकम्स का निर्धारण किया गया है। भाषा संबंधी निपुण लक्ष्य के सुस्पष्ट व मापन योग्य स्वरूप के तहत अलग-अलग मात्रा में शब्द-पठन की प्रवाह गति निर्धारित है। ऐसे में इन भाषाई दक्षताओं की स्थाई संप्राप्ति के लिए शब्दावली शिक्षण की विधा को नवाचारी रूप में अपनाने की विशेष आवश्यकता है। शुरुआती कक्षाओं में बच्चों के स्थानीय संदर्भों से जुड़े शब्दों को बार-बार उपयोग में लाना उनके शब्द-पठन और अभ्यास के लिए प्रभावी होता है।अतः ऐसे शब्दों से जोड़कर सिखाने की जरूरत है, जो बच्चों की अपने बोलचाल की भाषा में प्रयोग की जा रही हो।हमें यह ध्यान में रखना होगा कि, शब्द-पठन का आशय यह कदापि नहीं है कि बच्चों को शब्दकोश देकर अथवा शब्दार्थ लिखा कर रटा दिया जाए। इससे वे शब्दों की अवधारणात्मक एवं वास्तविक समझ नहीं बना पाते। बच्चे शब्दों का अर्थपूर्ण पठन तभी कर सकते हैं,जब वह प्रयोग में लाए जा रहे शब्दों का चिंतन कर उसे समझ रहे हों।बुनियादी साक्षरता के लिए 'समझ के साथ पढ़ना' बहुत जरूरी है। इसके लिए ध्वनि जागरूकता,वर्णपहचान, डिकोडिंग और पठन स्तर की दक्षताएं अर्जित करना अनिवार्य है। भाषा के कालांश में प्रारम्भिक स्तर पर कहानी,कविता,गीत,चित्र आदि के माध्यम से शब्द-पहचान व इनके अवबोध के लिए गतिविधियां कराना प्रभावी होता है। कविताओं और कहानियों का हाव-भाव के साथ प्रस्तुतीकरण, कहानी में अनुमान लगाने और घटनाओं को क्रमबद्धता से प्रस्तुत कराने, कल्पनाशीलता के अवसर देने और स्वयं के संदर्भों से जोड़कर बच्चों को अभिव्यक्ति के अवसर देने से शब्दों का सटीकता से तादात्म्य बन जाता है।शब्द-पहचान के लिए कक्षा के शुरुआती दिनों में चित्र चार्ट के माध्यम से लोगोग्राफिक पठन की गतिविधि कराते हुए बच्चों की समझ को वास्तविक शब्दार्थ से जोड़ना आवश्यक है। इसके अगले चरण में वह अक्षर और ध्वनि के संबंध की जानकारी के आधार पर शब्द को प्रिंट से ध्वनि में बदलकर अभिव्यक्ति करने में सक्षम हो जाते हैं। अंतिम चरण तक बच्चे के मन-मस्तिष्क में शब्द-चित्र विद्यमान हो जाते हैं; और अवलोकन मात्र से ही वे शब्दों की सही-सही पहचान करके उच्चारण करने लगते हैं। अर्थपूर्ण संदर्भों के सृजन हेतु वर्तमान में विद्यालयों की कक्षाओं को कहानी पोस्टर,कविता पोस्टर ,चित्र चार्ट ,चित्र कहानी पोस्टर, बिग बुक,सहज बुक, शब्द दीवार आदि के माध्यम से समृद्ध कर कक्षाकक्ष रूपांतरण किया गया है। जिससे बच्चे कक्षा में पहुंचकर स्वयं के संदर्भों जैसा वातावरण पाएं और सहजता के साथ इन संदर्भो से जुड़कर विभिन्न घटनाओं,व्यक्तियों, वस्तुओं, जीव-जंतुओं आदि की विशेषताओं और गुण-दोषों का चिंतन करते हुए अवबोध कर सकें। वे अपने पूर्व के शब्द-ज्ञान के आधार पर अज्ञात शब्दों को अर्थपूर्ण तरीके से जान सकें। इसके साथ ही कुछ अन्य नवाचारी तरीकों; जैसे- चित्रकोष बनाकर उपयोग कराना, शब्द दीवार बनवाकर शब्दों को चुनना, संदर्भों के आधार पर स्थानीय शब्दकोश का निर्माण कराना, शब्दों का वर्गीकरण कराना, अर्थपूर्ण संदर्भों में शब्दों का अनुप्रयोग आदि द्वारा बच्चों में शब्द-पठन की प्रवाह गति बढ़ाई जा सकती है। बुनियादी स्तर पर कक्षाओं में बच्चों को अपने घर की भाषा में अपनी बातें कहने का अधिक से अधिक अवसर देना भी शाब्दिक विकास में सहजता व स्पष्टता लाता है। इसलिए आवश्यक है कि, बच्चों से उनके घर, परिवार, गांव, उनके पसंदीदा खेल, भोजन, पशु-पक्षियों की बोलियों आदि के बारे में अधिक से अधिक संवाद स्थापित किए जाएं। प्रभावी संवाद से आत्मीय संबंधों में प्रगाढ़ता आती है, आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और सहज भाव से बच्चों की मौखिक शब्दावली में शुद्धता व समृद्धि आती है। इस प्रकार शब्दावली शिक्षण के पेडागॉजी का महत्व हमें समझना होगा; जिसके माध्यम से शत प्रतिशत बच्चे भाषा के निपुण लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकें।
- अभिषेक कुमार
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय ,जखौली
ब्लॉक-डुमरियागंज
जनपद -सिद्धार्थनगर,उ.प्र

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सबसे बड़ा वेद कौन-सा है ?