जखनी गांव की कहानी देशभर में फैल गई-पद्मश्री उमा शंकर पांडेय

लखनऊ,,बुंदेलखंड सांस्कृतिक एवं सामाजिक सहयोग परिषद, लखनऊ के तहत वरिष्ठ पत्रकार सुरेन्द्र अग्निहोत्री के आवास पर बुंदेलखंड के जल योद्धा तथा जखनिया माडल के प्रणेता पद्मश्री उमा शंकर पांडेय का सत्कार और सम्मान परिषद के अध्यक्ष एम के तिवारी महासचिव इंजी. कैलाश जैन, उपाध्यक्ष सुरेन्द्र अग्निहोत्री वरिष्ठ पत्रकार राजेन्द्र सिंह ने किया ।बुंदेलखंड सांस्कृतिक एवं सामाजिक सहयोग परिषद की मानद सदस्यता तथा स्मारिका भेट की। इस अवसर पर पद्मश्री उमा शंकर पांडेय ने विचार व्यक्त करते कहा कि सूखे की मार से बेहाल बुंदेलखंड का ये गांव जलग्राम कैसे बना? मां की वो बात और पुरखों की सीख से बुंदेलखंड का जखनी गांव बनाजलग्राम (Jalgram) है। यानी की पानी से लबालब। यहां आज इतना पानी है क‍ि किसान धान की खेती कर रहे। लेकिन ऐसा हमेशा नहीं था। कभी युवा यहां से पलायन कर रहे थे। एक समय तो ऐसा भी आया जब गांव में रहने वाले लोगों में बूढ़े और मह‍िलाओं की संख्‍या सबसे ज्‍यादा थी। फिर इस गांव क तस्‍वीर बदली कैसे? सूखाग्रस्‍त जखनी के कुंओं का जलस्‍तर आज इतना ऊपर कैसे है क‍ि बाल्‍टी लेकर पानी हाथ से निकाला जा सकता है?बुदेलखंड पानी की कमी के लिए पूरे देश में जाना जाता है। उत्‍तर प्रदेश और मध्‍य प्रदेश, दो राज्‍यों में फैले इसी रीजन का एक जिला का बांदा। उत्‍तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से लगभग 200 क‍िलोमीटर दूर बांदा के मुख्‍यालय से 14 क‍िलोमीटर दूर जखनी गांव है जो ग्राम पंचायत भी है। शहर से गांव की ओर बढ़ने पर मई-जून के महीने में आपको बबूल के अलावा कुछ भी हरा नहीं दिखेगा। सुंदर सड़कें सूर्य की रोशनी में नहाई इतनी गर्म होती हैं क‍ि स्‍लीपर पहनकर कुछ दूर चलें तो पैरों में छाले पड़ जाएं। इसे ऐसे भी समझा जा सकता है क‍ि वर्ष 2022 के मई में यहां का तापमान लगभग 50 डिग्री सेल्सियस पहुंच गया था जो देश में सबसे ज्‍यादा था।उमा शंकर कहते हैं क‍ि पानी के जलस्‍त्रों में सुधार भर से काम नहीं चलने वाला था। ऐसा नहीं है क‍ि बुंदेलखंड में बार‍िश नहीं होती। बार‍िश पर्याप्‍त होती है। लेकिन पानी रुकता नहीं। ऐसे में पानी रोकने की विध‍ि को अपनाने की जरूरत थी। यहां हमें पुरखों से मिली सीख काम आई। मैंने गांव में मेड़बंदी यज्ञ करवाया और लोगों को मेड़बंदी के बारे जागरूक करने लगा। उन्‍हें बताया क‍ि बार‍िश से ठीक पहले खेत को जुतवाने के बाद मेड़ों को और ऊंचा करना है और उन पर कम छाया वाले पेड़ लगाने हैं। ताक‍ि जब बार‍िश हो तो पानी खेतों में रुके। पेड़ की जड़ें मिट्टी को बांधकर तो रखती ही हैं, पानी भी सहेजती हैं। इससे पानी का जलस्‍तर बढ़ा ही, खेतों में पैदावार भी बढ़ी। इस मॉडल को नाम दिया- खेत पर मेड़, मेड़ पर पेड़।जखनी गांव की कहानी देशभर में फैल गई।

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