उ प्र राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान , हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी

उ प्र राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान , हिंदी दिवस के उपलक्ष्य पर ऑनलाइन काव्य गोष्ठी , 24 सितंबर दिन रविवार को सायं 6:00 बजे आयोजित किया गया जिसमें सभी ने एक से बढ़कर रचनाएं प्रस्तुत की जिसकी अध्यक्षता परम आदरणीय विजय त्रिपाठी 'विजय' जी ने की तथा वाणी वंदना सुमन शर्मा 'पद्मिनी' ने बहुत ही मधुर स्वरों में किया, संयोजक एवं संचालन चन्द्र देव दीक्षित 'चन्द्र' द्वारा किया गया। इस काव्य गोष्ठी में रेनू वर्मा 'रेणु' ,गीतिका चतुर्वेदी , विकास द्विवेदी इलाहाबादी ,डॉ ज्योत्सना सिंह 'साहित्य ज्योति', मानस मुकुल त्रिपाठी 'मानस', माला शिल्पकार , पूर्णिमा वेदार श्रीवास्तव , विपुल कुमार मिश्र , सुशील चंद्र श्रीवास्तव एवं चन्द्र देव दीक्षित 'चन्द्र' ने अपनी सुंदर-सुंदर रचनाएं प्रस्तुति की, प्रस्तुत है- जिसने भारत को वाणी दी, जिसे भारती भाती है।
भाषा की वैज्ञानिक क्षमता, विजय ज्ञान पर पाती है।
संस्कृत जिसकी माता है, जो संस्कृति की भाषा है।
उसी नागरी से भारत को, निज गौरव की आशा है।।
विजय त्रिपाठी
हे माँ सरस्वती ज्ञान दे, हे माँ सरस्वती ज्ञान दे,
हमको नवल उत्थान दे, हे माँ सरस्वती ज्ञान दे।
हिन्दी है भारत माँ का ,इक रेशमी परिधान,
प्यारा लगे हर एक को,वो रेशमी परिधान।
पूनम शर्मा "पद्मिनी"
मौन से लड़ना पड़ेगा
शब्द तो गढ़ना पड़ेगा
अनय के आगे सदा सच,
मुखर हो कहना पड़ेगा
मानस मुकुल त्रिपाठी "मानस"
बड़ा संगीन मसला है
हमनें तहरीर लिख डाली
खुद के फैसले पर खुद ही
नज़ीर लिख डाली।
रेनू वर्मा 'रेणु '
संस्कृत से उपजी ,राष्ट्र की भाषा
लोक हितैषी, ज्ञान बढ़ाये
सुंदर है सुनियोजित है ये
सीधे मनुज के, मन मे समाये
हिन्दुस्तान की शान है हिन्दी
भारत का मान बढ़ाये है हिन्दी
बस भाषा नही ये मां जैसी है
दिल को दिल से मिलाये है हिन्दी।
गीतिका चतुर्वेदी
बुंदेले हर बोलो के मुंह तुमने सुनी कहानी थी ।
खूब लड़ी मर्दानी वह जो झांसी वाली रानी थी।
आज मिलाती हूं तुमको मैं एक और मर्दानी से ,
लखनऊ के गौरवशाली इतिहास की अमर कहानी से।।
डॉ ज्योत्सना सिंह
हिंदी हमारी चेतना है,
राष्ट्र का अभिमान है।
देवनागरी लिपि है इसकी,
संस्कृत उद्भूत भाषा है यह।।
पूर्णिमा बेदार श्रीवास्तव।
हिंदी दिवस पर आज बैठकर कविता पाठ सुनाता हूं....
हिंदी के माथे की बिंदी की शोभा मैं तुम्हें बतलाता हूं।
यह भारत मां के मस्तक पर सबसे चमकीली बिंदी है....
यह सब को जानी पहचानी भारत की भाषा हिंदी है।।
कवि विकाश द्विवेदी इलाहाबादी
हिंदी हो जन-जन की भाषा
ऐसी है मेरी अभिलाषा ,
लिखे , पढ़े , बोलें हिंदी में
- पूरी हो जाये मेरी आशा।।
चन्द्र देव दीक्षित 'चन्द्र'
हिन्दी भाषा ही नहीं,मान है ससम्मान है।
भाषाएं तो बहुत है,हिन्दी भाषा आसान है।।
सुन्दर मीठी सरल है,भाषा से हमें प्यार है।
पढ़ने में सहज लगे सुरों की विस्तार है।।
संस्कृत से जन्म लिया ,ये भारत का लाल है।
अपनाएं हम मातृभाषा, क्यूं करें ये सवाल है?
हमारी भाषा हिन्दी से ही ,भारतवर्ष की पहचान है।
सबसे मीठा शहद जैसा, हिन्दी भाषा जबान है।।
डॉ माला शिल्पकार

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