पथ
उस पथ पर चल पड़ा
जहां मंजिल का पता नहीं
मार्ग का पता नहीं
पर चलने की हिम्मत
पहाड़,नदी,पठार
खाईयों की हो चाहे दरार
कुछ खोने का न था
कुछ पाने की दरकार
क्या पाना चाहता था
नहीं था उसका भी ज्ञान?
मन में कुछ रिक्तता का था भान !
राह में बढ़ता गया आगे की ओर
अतीत की पकड़े रहा सदा डोर
माल से ज्यादा रहे हमेशा मूल्य
लोग कहते रहे कर रह होे भूल
जब समय आयेगा आपका प्रतिकूल
तब पछताओगें कि मैने की है भूल!
नहीं में पछता रहा,कायम है उसूल
जिन्दगी सब को मिलते काटें-फूल।
-सुरेन्द्र अग्निहोत्री