आज जीवन गीत बनने जा रहा है !


ज़िंदगी के इस जलधि में ज्वार फिर से आ रहा है!

छा गई थी मौन पतझड़ की उदासी,

गान जब से बन गए मेरे प्रवासी !

 आज उनको मुरलिका में पुनः कोई गा रहा है !

आज जीवन गीत बनने जा रहा है !

भग्न-वीणा पर बजाए हैं किसी ने !

टूटते से स्वर सजाए हैं किसी ने !

 आज उखड़ा श्वास भी संगीत बनने जा रहा है !

 आज जीवन गीत बनने जा रहा है!

चिर समय से अपरिचित था रहा कोई !

 याद विस्मृति के उदर में रही सोई ! 

कल रहा अनजान जो. अब मीत बनने जा रहा है ! 

आज जीवन गीत बनने जा रहा है !

मिल रहे हैं अधर मधु की यामिनी में !

खिल रहा है चाँद उज्जवल चाँदनी में.

 चिर विरह भी मधु-मिलन की प्रीत बनने जा रहा है !


आज जीवन गीत बनने जा रहा है !

-कवि स्व. मनुज देपावत (देशनोक)

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