बेचैनी
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+ अशोक आनन +
अंतिम यात्रा में
जब अपेक्षा से अधिक विलम्ब हो गया तो तो उनकी बेचैनी बढ़ने लगी । उन्होंने बगल में
बैठे गुप्ता जी से पूछा , ' और कितनी देर है ..... ? '
' पता नहीं । ' उन्होंने संक्षिप्त - सा उत्तर दिया ।
वे फ़िर मन मसोस
कर रह गए । वे बार - बार घड़ी देखते और मन ही मन कुछ बुदबुदाने लगते ।
जब उनकी अपेक्षा
से ज़्यादा देर हो गई तो उन्होंने अब शर्मा जी पूछा , ' शर्मा जी ! और कितना समय लगेगा ..... ? '
उनकी बढ़ती
बेचैनी देख शर्मा जी बोले , ' बस बड़ोदरा वाली बहन की प्रतीक्षा है । वे बस यहां
पहुंचने ही वाली हैं । '
उन्होंने फ़िर
समय देखा और मन ही मन बुदबुदाया , ' मैच का सारा मज़ा
ही आज किरकिरा हो गया । अंत्येष्टि से लौटने तक तो आधा मैच ही हो जाएगा ।
स्....... साली बुढ़िया को आज ही मरना था । ' और वे मन मसोस कर
फ़िर जड़वत बैठ गए । अब उनका पीड़ा जनित चेहरा पढ़ने लायक था ।