ग़ज़ल



बनाने वाला  जब  माहौल  मस्ताना  बनाता  है

किसी महबूब की आंखों में मयखाना बनाता है

बनाने को तो कुछ न कुछ वह रोज़ाना बनाता है

चमन  से रूठ  जाता  है, तो  वीराना  बनाता है 

मोहब्बत तो मोहब्बत है न इसका इम्तिहाँ लेना

हमेशा बहमो शक अपनों को बेगाना बनाता है

किसी मक़सद में आगे बढ़कर पीछे लौटना कैसा

रिवायत यह शमा पर जल के परवाना बनता है

न अपना दिल हुआ अपना तो गैरों से गिला कैसा

यही इलहाम ,हम नादानों को दाना बनाता है

किसी को देखना फिर मुस्कुराकर मुंह छुपा लेना

ज़माना इन इशारों से ही अफ़साना बनाता है

सभी प्यासों के हिस्से में,बराबर मय नहीं आती

तू साक़ी, कैसी  पैमाइश से पैमाना बनाता है

अमल किरदार में पूरी ठसक है राजशाही की

दिखावे के लिए लहजा फक़ीराना बनाता है

"उदय" सुकरात होना चाहता है इस ज़माने में

कलम का कर्ज कवि को कैसा दीवाना बनाता है

उदयप्रताप सिंह



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