हिंदी के नवोन्मेषी आयामों पर केंद्रित महत्त्वपूर्ण कृति

 


डॉ. राहुल मिश्र


राजभाषा हिंदी के कार्यकारी आयामों पर लंबे समय से कार्यरत श्री राहुल खटे की हाल ही में प्रकाशित कृति है- राजभाषा हिंदी के नवोन्मेषी आयाम। राजभाषा हिंदी के साथ ही हिंदी के प्रयोजनमूलक पक्षों पर विचार-विमर्श का आज एक नया दौर दिखाई देता है। हिंदी केवल साहित्य से संबद्ध नहीं है, वरन् अनेक क्षेत्रों में हिंदी के प्रगामी और कार्यकारी उपयोग अस्तित्व में आए हैं। हिंदी के अध्ययन-अध्यापन में प्रयोजनमूलक हिंदी का नया क्षेत्र विकसित हुआ है। सूचना और संचार क्रांति के साथ इस क्षेत्र में नए आयाम सृजित हुए हैं। इन नवीन आयामों ने जिन अपेक्षाओं को कार्यकारी हिंदी व उसके नवोन्मेष के संदर्भों में अनुभूत किया है, ऐसी अपेक्षाओं की पूर्ति के लिए यह कृति विशिष्ट है।

राहुल खटे जी राजभाषा हिंदी के कार्यालयी क्षेत्र से संबंधित हैं। वरिष्ठ अधिकारी होने के साथ ही राजभाषा हिंदी से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों, योजनाओं और प्रबंधन आदि में उनकी सक्रियता रहती है। इस कारण उनके पास अनुभवों का विस्तार भी है, और जिज्ञासाओं का संसार भी है। उनकी सद्यः प्रकाशित कृति उनके दैनंदिन अनुभवों के साथ ही जिज्ञासुओं की जिज्ञासाओं के समाधान के समेकित स्वरूप के तौर पर पाठकों के बीच आई है। चूँकि कृति व्यावहारिक हिंदी और हिंदी के नवोन्मेषी पक्ष पर केंद्रित है, इस कारण बड़े महत्त्व की है। हिंदी के प्रयोजनमूलक पक्षों को लेकर विश्वविद्यालय स्तर की अनेक पाठ्यपुस्तकें उपलब्ध हैं। इनमें पाठ्यक्रम के अनुसार विषय मिल जाते हैं। लेकिन इस परिधि से बाहर निकलकर यदि कोई कृति हिंदी के नवोन्मेषी आयाम पर खोजनी हो, तो प्रायः निराशा ही हाथ लगती रही है। राहुल जी इस पक्ष पर साधुवाद के साथ ही हिंदी की सेवा की दृष्टि से अभिनंदन के पात्र हैं, कि उन्होंने अत्यंत सार्थक, सबल, सशक्त और महत्त्वपूर्ण कृति हिंदी जगत् को दी है।

संस्कार साहित्यमाला, मुंबई से प्रकाशित इस कृति में इक्कीस निबंध हैं। सभी निबंध वैचारिक गहनता के साथ ही तथ्यपरक जानकारी से पूर्ण हैं। संग्रह का पहला निबंध स्वयंप्रभा नामक 32 चैनलों के घर बैठे अध्ययन की व्यवस्था देने वाले कार्यक्रम पर केंद्रित है। वर्ष 2017 में यह आनलाइन अध्ययन के लिए प्रारंभ किया गया था। ऐसे अनेक विद्यार्थियों के लिए यह उपयोगी बना, जो किसी भी कारण से नियमित रूप से पढ़ने के लिए नहीं जा सकते। हम देखते हैं, कि वर्ष 2020 तक ऐसे पाठ्यक्रम बहुत उपयोगी और प्रचलित नहीं हो सके, लेकिन कोविड-19 की विभीषिका के समय ये पाठ्यक्रम विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी हुए। स्वयंप्रभा योजना की विशेषताओं के साथ ही आनलाइन अध्ययन से संबंधित अनेक जानकारियाँ, जैसे- नेशनल डिजिटल लाइब्रेरी, राष्ट्रीय शैक्षणिक डिपाजिटरी, मूक (एमओसीसी) आदि की जानकारी विस्तार के साथ मिलती है।

संग्रह के दूसरे आलेख- ‘भारत की शिक्षा नीति और राजभाषा नीति’ में हिंदी के साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं की शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगिता पर विशद चिंतन किया गया है। भारत की नई शिक्षा नीति में हिंदी को उसका सम्मानजनक स्थान देने की अनिवार्यता का पक्ष आलेख में दिखाई देता है। तीसरा आलेख- ‘भाषा संगम : एक भारत श्रेष्ठ भारत’ है। यह आलेख भारत सरकार द्वारा विभिन्न भारतीय भाषाओं को एकसाथ लाते हुए विभिन्न विद्यालयों, अलग-अलग कक्षा-स्तरों में न केवल भाषायी विविधता को राष्ट्रीय एकता का सूत्र बनाने के प्रयास का विश्लेषण करता है, वरन् भारतीय भाषाओं के माध्यम से भारत की सांस्कृतिक विविधता को जन-जन तक पहुँचाने के भारत सरकार के प्रयासों के प्रति अपनी सम्मति प्रकट करता है।

‘माइक्रोसाफ्ट के उपयोगी एप्लीकेशन’ संग्रह का बहुत रोचक आलेख है, जिसमें बिंग, स्वे, एम एस वर्ड, इंडिक ई-मेल एड्रेस जैसे उपयोगी साफ्टवेयर्स की जानकारी और प्रयोग के तरीकों को बताया गया है। हिंदी के साथ ही अन्य भारतीय भाषाओं में ‘माइक्रोसाफ्ट’ के ‘एप्लीकेशन्स’ का कैसे उपयोग कर सकते हैं, यह भी इस आलेख को पढ़कर जाना जा सकता है। संग्रह का अगला आलेख- ‘हिंदी विज्ञान-तकनीकी साहित्य की उपलब्धता और पाठ्यक्रम’ है। हिंदी को देश की भाषा बनाने, राष्ट्रभाषा का स्थान दिलाने और साथ ही कार्य-व्यवहार में अंग्रेजी के स्थान पर हिंदी को लाने की बातें तो बहुत होती हैं, लेकिन क्या विभिन्न क्षेत्रों में हिंदी की पुस्तकों की, हिंदी में अध्ययन सामग्री की उपलब्धता पर विचार किया जाता है? इस प्रश्न का उत्तर खँगालता यह आलेख लेखक द्वारा प्रस्तुत किए गए आँकड़ों व तथ्यों की कसौटी पर कसते हुए अनेक विचारों का उद्वेलन पैदा कर देता है। आज भी विज्ञान, तकनीकी, चिकित्सा के साथ ही अनेक विषयों में हिंदी में लिखी हुई स्तरीय पुस्तकों का अभाव चिंतित करता है।

‘ईडियट बॉक्स (टेलिविजन) और किसानों की आत्महत्याएँ’ एकदम अलग तासीर का आलेख है। किसानों की आत्महत्याओं के कारण एक अलग दृष्टि के साथ इस आलेख में चिन्हित किए गए हैं। सूचना-संचार के माध्यमों ने लोगों के अंदर महत्त्वाकांक्षाओं को जगाया है, और जीवन को जटिल बना दिया है। टेलीविजन से इसकी शुरुआत को लेखक मानता है। आज का युवा वर्ग खेती-किसानी जैसे काम को तुच्छ मानता है। जो किसानी में लगे हैं, उनकी दशा देखकर भी ऐसा होना स्वाभाविक लगता है। खेती-किसानी में नवाचार हो रहा है, लेकिन इसका प्रभाव आज भी अनेक किसानों तक नहीं पहुँच पाया है। ऐसी विभिन्न स्थितियाँ किसानों के जीवन के लिए, उनके अस्तित्व के लिए संकट पैदा करती हैं। ऐसी विषमताओं की तरफ आलेख ध्यान खींचता है।

‘दशावतारों की वैज्ञानिकता’ और ‘सही क्या? 84 लाख योनियाँ या डार्विन का विकासवाद’ दोनों आलेख उन प्रचलित धार्मिक मान्यताओं के वैज्ञानिक संदर्भों को विश्लेषित करते हैं, जिनके बारे में विज्ञानसम्मत और तर्कपरक जानकारी आज भी बहुत-से लोगों को नहीं है। प्रायः विज्ञान से दूर होने पर अंधविश्वास पनपता है। अंधविश्वास में तार्किकता नहीं होती, और विज्ञानसम्मत-तर्कसम्मत तथ्यों की अनुपस्थिति में अंधविश्वास कुतर्क के रूप में या विकृति के रूप में पनपने लगता है। हमारी धार्मिक मान्यताओं को विज्ञान की कसौटी पर कसना आधुनिकता का एक अंग है। यह आवश्यक भी है। दोनों ही आलेख इस दृष्टि से अनेक समाधान दे जाते हैं।

‘बैंकिंग क्षेत्र के शब्दों की व्युत्पत्ति और प्रयोग’ बहुत रोचक आलेख है। बैंकिंग क्षेत्र में अनेक ऐसे शब्द प्रयोग में आते हैं, जिनके बारे में जानकारी कम होती है, और जिज्ञासा अधिक...। यह आलेख ऐसे अनेक शब्दों की गहरी पड़ताल करता है, अनेक रुचिकर तथ्य भी सामने लाता है। ‘हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की प्रगति में तकनीक का योगदान’ अन्य महत्त्वपूर्ण आलेख है। सूचना और संचार तकनीक ने भारतीय भाषाओं को स्थायित्व दिया है। एक समय हिंदी का काम भी अंग्रेजी पर निर्भर हुआ करता था। आज हिंदी का तकनीकी क्षेत्र में खूब उपयोग होने लगा है, साथ ही दूसरी भारतीय भाषाएँ भी समृद्ध हुई हैं।

‘भारतीय विज्ञान की परंपरा : राष्ट्रीय विज्ञान दिवस के परिप्रेक्ष्य में’ और ‘भारतीय भाषा में विज्ञान-लेखन’ दो ऐसे आलेख हैं, जो विज्ञान के क्षेत्र में हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के विस्तार को रेखांकित करते हैं। भारतीय ज्ञान-परंपरा में विज्ञान का अन्यतम स्थान रहा है। लेकिन पाश्चात्य प्रभाव और अंग्रेजी को ही विशिष्ट मान लेने की नीयत ने स्वाधीनता के बाद भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं को विज्ञान के व्यापक संदर्भों से संलग्न नही किया था। पहला आलेख सरकार के स्तर पर किए जाने वाले प्रयासों को, और दूसरा आलेख रचनाकारों, लेखकों के प्रयासों को विश्लेषित करता है।

‘देवनागरी लिपि में भी बन सकती है, ई-मेल आय डी’ और ‘हिंदी कहानियाँ सुनें अपने मोबायल पर’ ऐसे आलेख हैं, जो हिंदीप्रेमियों को प्रसन्न होने का अवसर देते प्रतीत होते हैं। प्रायः ई-मेल पते अंग्रेजी में होते हैं, और जब हिंदी के यूनिकोड फांट खूब प्रयोग में आ रहे हों, तो मेल पते हिंदी में क्यों नहीं हो सकते? और अगर हो सकते हैं, तो कैसे? ये प्रश्न आलेख में अपने उत्तर पा जाते हैं। और हिंदी में कहानियाँ सुनने का सुख कैसे प्राप्त करें, इसका उत्तर दूसरे आलेख में मिल जाता है।

‘रामचरित मानस में साहित्य और विज्ञान का अंतर्संबंध...’ और ‘क्या हम अपने आपको सर्वश्रेष्ठ भारतीय समझते हैं....’, ये दोनों आलेख भारत और भारतीयता के संदर्भ में विशिष्ट हैं। श्रीरामचरितमानस देश ही नहीं, दुनिया में अनेक लोगों के लिए पूज्य और मार्गदर्शक ग्रंथ है। मानस में निहित विज्ञानसम्मत तथ्य जन-आस्थाओं को प्रगाढ़ करने में महत्त्वपूर्ण हैं। इस दृष्टि से अनेक तथ्यों को उकेरता यह आलेख बड़े महत्त्व का है। इसी प्रकार विदेश से आयातित विचारों और कार्य-व्यवहार पर कड़ी चोट करता दूसरा आलेख भारतीयता के प्रति आस्थावान होने की सीख दे जाता है।

‘मूषक गया कू आया’, ‘आन स्क्रीन की-बोर्ड’ और ‘भाषिनि : भारतीय भाषाओं में अनुवाद का प्लेटफार्म’, में हिंदी के लिए उपयोगी आधुनिक ‘साफ्टवेयर’ और ‘एप’ के बारे में विस्तार से बताया गया है। ऑन स्क्रीन की- बोर्ड जहाँ टाइपिंग की जटिलता को कम करने वाला है, वहीं भाषाओं के मध्य सेतु, अर्थात् अनुवाद के लिए ‘भाषिनि’ प्लेटफार्म की उपयोगिता और कार्यशैली के बारे में पता चलता है। संग्रह का अंतिम आलेख ’प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस’ की नई योजना का विश्लेषण करता है। हमारे आसपास अनेक ऐसे कुशल लोग होते हैं, जो अपनी योग्यता और कार्यदक्षता को नए अध्येताओं के साथ साझा करके समाज का हित कर सकते हैं। केवल उपाधि न होने पर ऐसे लोगों का कौशल समाज को विधिसम्मत ढंग से उपलब्ध नहीं हो पाता था। केंद्र सरकार द्वारा उच्च शिक्षा में प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस योजना को लागू करना अनेक अर्थों में लाभकारी हो सकता है। आलेख में व्यापक विश्लेषण इस योजना की सार्थकता को सिद्ध करता है।

समग्रतः, समीक्षित कृति के सभी आलेख विविधता के साथ एकरसता का भान कराते हुए हिंदी के नवोन्मेषी आयामों पर गहन विश्लेषण करते हैं। अनेक नई जानकारियों, तकनीकी अनुप्रयोगों, सूचना-संचार की बारीकियों, हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं के साफ्टवेयर और एप्लीकेशन्स की जानकारियों के साथ ही रुचिकर तथ्यों को जानने के लिए यह कृति महत्त्वपूर्ण है। समीक्षित कृति के कृतिकार श्री राहुल खटे ने अपने अनुभवों को बड़े रोचक ढंग से लिपिबद्ध किया है, जानकारियों की साझेदारी की है। इन्हीं विशिष्टताओं के कारण यह कृति पठनीय भी है, और संग्रहणीय भी है।

समीक्षित कृति- राजभाषा हिंदी के नवोन्मेषी आयाम

लेखक- श्री राहुल खटे

प्रकाशक- संस्कार साहित्यमाला मुंबई

मूल्य- 199/-    

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