कविता - लड़के खो जाते हैं...
वक्त कमाना सिखा न पाए
पैसा लाकर दिखा न पाए
खर्च न घर का उठा सकें जो
न ही पूँजी जुटा सकें जो
बोझ वो भारी हो जाते हैं
लड़के खुद में खो जाते हैं
जब दूर शहर में रहते हैं
तो किससे पीड़ा कहते हैं
कच्चा-पक्का खा लेते हैं
गम में भी मुस्का लेते हैं
बिन खाए भी सो जाते हैं
लड़के ऐसे खो जाते हैं
बाधाएँ सिर पर आती हैं
काँटों की सेज बनाती हैं
जीवन से अपने लड़ते हैं
वो अम्बर तक पर चढ़ते हैं
मुश्किल को जो ढो जाते हैं
वरना लड़के खो जाते हैं
बचपन में कितने भोले हों
माटी से सोना तोले हों
सब समझदार ही बनते हैं
अनजान शहर जब चुनते हैं
यादें दिल में बो जाते हैं
यूँ ही लड़के खो जाते हैं
अभिजित त्रिपाठी
पूरेप्रेम, अमेठी, उ.प्र.
मो.- 7755005597
पिनकोड - 227405
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