रथ से उत्तर प्रदेश में सत्ता महारथ हासिल करने की जुगुत में कांग्रेस
.रथ से उत्तर प्रदेश में सत्ता महारथ हासिल करने की जुगुत में कांग्रेस, भाजपा, रालोद के साथ समाजवादी पार्टी लग गयी है। इस अभियान में बाजी भले ही कांग्रेस ने मारी हो लेकिन रथों से यूपी के सिंहासन पर बैठने में माहिर रहे मुलायम सिंह यादव ने अब यूपी सिंहासन पर अपने उत्तराधिकारी अखिलेश यादव को बैठाने के लिये क्रान्तिरथ पर रवाना करके संदेश दे दिया है कि भविष्य की राजनीति युवाओं के कंधों के बल पर लड़ी जायेगी। आ, अब लौट चले के नारे के साथ कांग्रेस से दूर हो चुके लोगांे के घरों में दस्तक देकर उन्हें पुनः कांग्रेस में लाने के लिये कांग्रेस बाबा साहब भीमराव अम्बेडकर की जन्म जयंती पर बसपा का गढ़ अम्बेडकर नगर से बसपा को चुनौती देने के लिये चुनावी रथों का गाँडीव बजा चुकी है। राहुल गाँधी अम्बेडकर नगर में 14 अप्रैल को कांग्रेस की रथ यात्राओं को हरी झंडी दिखाकर एक तीर से दो शिकार करने की कवायद कर चुके है। रथो केे महारथ से प्रदेश का अगला मुख्यमंत्री के रूप में कांग्रेस को प्रोजेक्ट करने के साथ-साथ जनता को खोटे सिक्के और खरे सिक्कें की पहचान देने की रणनीति के बीच कांग्रेस में घमासान मचा है। गौरतलब है कि चैधरी चरण सिंह की विरासत के लिए जब सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव और चैधरी अजीत सिंह के बीच जंग छिडी थी, तब इस तरह की यात्रा की शुरूआत की गई थी। उस समय अजित सिंह अमेरिका से लौट कर आए थे शुरूआत कर अपने पिता चरण सिंह की विरासत पर अपनी दावेदारी प्रस्तुत करने का माध्यम रथ यात्रा बनी थी। मुलायम सिंह यादव ने रथयात्रा की शुरूआत कर चैधरी चरण सिंह की विरासत पर अपना हक जताया। मुलायम सिंह यादव पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करते थे और एक प्रखर समाजवादी के रूप मंे समाजवादियों की पहचान बनाई थी और समाजवाद का प्रचार-प्रसार लंबे अर्से से कर रहे थे। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर उनकी रथयात्रा चैधरी अजित सिंह की पदयात्रा पर भारी पड़ी और लोगांे ने उन्हें ही चैधरी चरण सिंह का उत्तराधिकारी माना। हालांकि कुछ समय बाद मुलायम सिंह यादव ने फिर रथयात्रा निकाली और प्रदेश में साम्प्रदायिक सोहार्द्र कायम करने का बीड़ा उठाया। इतना ही नहीं उन्होंने बसपा सुप्रीमों कांशीराम से हाथ मिला कर प्रदेश की राजनीति की नई दिशा देने का भी प्रयास किया।
लंबे अर्से बाद अब उनके पुत्र अखिलेश यादव उन्हीं के पदचिन्हों का अनुसरण करते दिख रहे है। अखिलेश यादव ने रथयात्रा की शुरूआत कर कई संकेत दिए है। दूसरे यह कि यदि प्रदेश विधानसभा में सपा बहुमत प्राप्त करती है तो मुख्यमंत्री कौन होगा। अखिलेश यादव की यह लड़ाई विधानसभा चुनाव की तैयारी के रूप में है। काफी समय से अखिलेश यादव लगातार संघर्ष कर रहे है और सपा के विस्तार में उन्होंने अहम भूमिका निभाई है। रथयात्रा में जिस तरह से लोगों की भीड़ उमड़ रही है वह न सिर्फ हैरान करने वाला है बल्कि विरोधियों के लिए चेतावनी भी है। विशुद्ध रूप से जाति और मज़हब की सियासत करने वाले अपने वोट बैंक को रोक पाने में नाकाम रहे सपा और बसपा नेतृत्व को आगामी विधानसभा चुनाव अग्नि परीक्षा साबित होगी। बिहार मेें विकास की जय! क्या यूपी में पराजय का कारण बनेगी? इस सन्देश के चलते उत्तर प्रदेश के राजनैतिक रंगमंच पर सियासी दंगल के लिए शतरंज की विसात बिछ गई है। माया सरकार ने लगातार पांसे अपने अनकूल फेकने के लिए हर दांव लगाया लेकिन पासे तो पांसे ही है उन्हें नियत्रित करने के लिए छल और प्रपंच का जाल भी काम नही कर सका जिसके कारण पूरे प्रदेश ही नही देश का सियासी गठित उलझता नजर आ रहा है। 2012 में होने वाले विधानसभा का चुनावों को फतह करने की रणनीति के तहत सपा बसपा और कांग्रेस के साथ भाजपा अपने हर दांव चलने की तैयारी में लगी है। बसपा सुप्रीमों मायावती का टूटता तिलस्म बसपा के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।बहुजन से सर्वजन और सर्वजन से बहुजन की और लौट रही बसपा के लिए सबकुछ पहले जैसा नही रहा है केडर वेस पार्टी का तमगा हासिल करने वाली बसपा के लिए उत्तर प्रदेश की सियासी गलियों में माया सरकार के विरूद्ध किसान, व्यापारी खड़े हो गये है। प्रदेश में हाशिऐं पर जा चुकी समाजवादी पार्टी पूरे रंग में आक्रमक भूमिका अदा करने को तैयार दिख रही है। आजम खान की घर वापसी का ऐलान मुस्लिम मतों एक बार फिर झोली मंे चले आने का आधार बन सकता है। भारतीय जनता पार्टी अपने अतीत को दुहराने के लिए पूरी दम खम के साथ मैदाने जंग में कूद चुकी है। उमाभारती की वापसी के बाद कल्याण सिंह पर फिरसे डोरे डाले जा रहे है। मथुरा से राजनाथ सिंह तथा बनारस से कलराज मिश्र विजय रथयात्रा पर निकलने वालेे है भाजपा प्रदेश सरकार के विरूद्ध भंडाफोड़ अभियान चला रही है। माया मेम को सबसे ज्यादा डर कांग्रेस का सता रहा है कांग्रेस के लिए प्रदेश में पुर्नजीवन के लिऐ आक्सीजन मिल चुका है। इस आक्सीजन को अपने खाते में कायम रखने के लिए कांग्रेस और बसपा में आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिऐ मैदान-ए-जंग मंे आ चुकी है कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इलाहाबाद की रैली मंे प्रदेश सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाने की घोषण करके माया की चिन्ता बड़ा दी है। बसपा के लिए सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है सत्ता संघर्ष में मान्यवर कांशीराम के साथ रहे लोगों को मिल रही लगातार उपेक्षा और किनाराकशी ने बहुजन समाज पार्टी के मिशनरी आन्दोलन की गति को मौथरा कर दिया है। बहुजन समाज पार्टी मुखिया की पार्टी के अन्दर न्याय व्यवस्था ने भी असन्तोष पैदा कर रखा है। गुड्डू पंण्डित, अशोक सिंह चन्देल जैसे अनेक विधायकों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा देने से दूसरे दलों तथा सुभाष पान्डे, दद्दू प्रसाद, रतन लाल अहिरवार जैसे मंत्रीयों की टिकिट कट जाने के साथ के अलावा कैलाश साहू, घूराराम, राम कुमार तिवारी सहित एक दर्जन विधायकों के टिकिट कट जाने की आहट के बीच फरीद महफूज, शेरबहादुर सिंह, सतीश वर्मा आदि विधायकों ने बसपा से टाटा कर लिया है। विभिन्न पार्टीयों से बसपा में आये लोगों के कान खड़े कर दिये है।युवाओं को राजनीतिक धारा से जोड़कर क्रांति लाने की दिशा मेें अब राष्ट्रीय लोकदल ने भी प्रयास आरंभ कर दिए हैं। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव राहुल गांधी की तरह ही यह मंत्र रालोद के राष्ट्रीय महासचिव चै. जयंत को भी समझ आया है। उन्होने साफ तौर पर इस बात का संकेत दिया कि बुजुर्गो को बाहर करके युवाओं यह बात रालोद के लिए सटीक नहीं बैठती। क्योंकि किसानों की बात उठाने वाले इस संगठन में अधिकांश योद्धा पुराने अनुभवी ही हैं। कई चुनावों से मुस्लिम वोट बैंक के सहरे चुनाव लड़ने वाली सपा में मुस्लिम मतों को लेकर सर्वाधिक बेचैनी है। इसी तरह हिन्दू वोट बैंक का भाजपायी तिलिस्म टूटता नजर आ रहा है। कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और उत्तर प्रदेश के प्रभारी दिग्विजय सिंह माया सरकार पर करोड़ों नोटों की माला पहनने के मुद्दे को रथ यात्राओं में जोर शोर से जनता के बीच ले जाने के साथ-साथ उत्तर प्रदेश की राजनीति में अपराधी के नेता बनने तथा लूटतंत्र का सिलसिले वार हिसाब जनता के बीच गाँव-गाँव तक पहुचाने के साथ-साथ मनरेगा से मिली राहत को चुनावी मुद्दा बनाने के प्रयास में है। बसपा के भविष्य के बारे में राजनैतिक पंडितों की माने तो अब बहुत देर हो चुकी है वेलगाम पुलिस, अपराधीयों की मित्र और जनता की शत्रु बन गई है पुलिस थाने यातना गृह और मौत के कत्लखाने बन गये है जेल भी सुरक्षित नहीं रही है जिसके कारण माया सरकार से जनता का मोह भंग हो गया है। सत्ता का लाभ पाने के लिये वर्ष 2007 के विधानसभा मंे 155 विधायक ऐसे जीत गए थे, जिनके खिलाफ पुलिस थाने मंे तमाम संगीन अपराधों के मुकदमें दर्ज हैं। ऐसा नहीं कि ये विधायक किसी एक या दो पार्टी के है। इसमें सभी पार्टियां शामिल है। जिस अनुपात में जो पार्टी जीती थी, उसी अनुपात में उसके आपराधिक रिकार्ड वाले विधायकों वाले विधायक की संख्या थी। 2007 के चुनाव नतीजे घोषित होने के बाद पुलिस ने जो ब्यौरा तैयार किया था, उसके अनुसार बहुजन समाज पार्टी के 68 विधायक ऐसे थे, जो आपराधिक गतिविधियों लिप्त है औरउकने खिलाफ विभिन्न अदालतों में मुकदमें चल रहे हैं। समाजवादी पार्टी के ऐसे विधायकों की संख्या 47 है तो भाजपा की 18 । कांग्रेस के नौ और रालोद के चार विधायकांे के खिलाफ पुलिस थानों मे आपराधिक मामले दर्ज हैं। आपराधिक मामले वाले निर्दल एवं अन्य की संख्या नौ है। यह हैरानी की बात भी है और शर्मिंदगी की भी प्रदेश में जितने सनसनीखेज अपराध हुए उसका मुख्य आरोपी कोई न कोई विधायक ही निकला। वह चाहे मधुमिता हत्याकांड हो या फिर इंजीनियर मनोज गुप्ता हत्याकांड या शशि हत्याकाण्ड। सुशील कुमार जैसे लोग भी विधानसभा के सदस्य है, जिनके खिलाफ 25 से मुकदमें चल रहे है और वह भी हत्या, हत्या के प्रयास जेसी गम्भीर आरोपों के। सुशील कुमार चंदौली की धानापुर विधानसभा सीट से विधायक है। कवियत्री मधुमिता हत्यकांाड कें उम्रकैद की सजा काट रहे समाजवादी पार्टी के विधायक अमरमणि त्रिपाठी के खिलाफ भी 13 संगीन मामलों के मुकदमें चल रहे है और वह पिछला चुनाव जेल में रहते हुए जीत गए थे। हमीरपुर से समाजवादी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले अशोक चंदेल के खिलाफ भी एक दर्जन से ज्यादा मुकदमें चल रहे हैं। निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में अखिलेश सिंह जेल में रहते हुए चुनाव जीत गए थे, उनके खिलाफ भी एक दर्जन से ज्यादा मुकदमंे विचाराधीन है। बीकापुर के विधायक जितेन्द्र कुमार के खिलाफ भी एक दर्जन मुकदमें है। मुख्तार अंसरी पर हत्या, अपहरण आदि के 28 मुकदमें चल रहे है। फैजाबाद के शशि हत्याकांड के आरोपी विधायक आनंद सेन के खिलाफ आधा दर्जन मुकदमें है। ज्ञानपुर विधानसभा सीट के विधायक विजय मिश्र के खिलाफ भी एक दर्जन मुकदमें हैं। इंजीनियर मनोज हत्याकंाड के आरोपी विधायक शेखर तिवारी के खिलाफ तीन मुकदमें दर्ज है। सपा के प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश यादव कहते है कि बसपा अपराधी निकालने की बात करती है तो मंत्रिमंडल में आधे मंत्री तो आपराधिक छवि के ही है, उन्हें निकाल दिया जाये तो सरकार अल्पमत में आ जायेगी। कांग्रेस की दुबारा प्रदेश अध्यक्ष बनी डा0 रीता बहुगुणा का आक्रम रूख ने समाजवादी पार्टी और भाजपा को भी सड़कों पर सीधे संघर्ष के विवश कर दिया है। कांग्रेस प्रदेश में कानून व्यवस्था का बड़ा सवाल बनाकर बहुजन समाज पार्टी को घेरने की रणनीति के तहत टीवी चैनलों का दाव अब उल्टा पड़ रहा है। प्रदेश सरकार ने चैनलों के आक्रमण से मुक्ति का रास्ता खोज लिया है। विज्ञापनों की पौवबारह से टीवी चैनलों का नजरिया बसपा के प्रति बदल गया है। नरेगा और विकास की चटनी का बघार लगा कर वोटरों के सामने राहुल गाॅधी ने जो थाली प्रस्तुत की है । उसमें महंगाई के छौके और अन्ना के अनशन ने सारा वातावरण मिर्च की तीखीगंध वाला बना दिया है। यह गंध कांग्रेस के चुनावी समीकरणों का क्या हश्र करती है यह तो वक्त ही बतायेगा।
छोटे राज्यों के नाम पर उत्तर प्रदेश का चार हिस्सों में बाॅटने का दाव खेल कर बसपा की निगाहें कांग्रेस के हर कदम पर लगी है। तो कांग्रेस भी बसपा में सेंध मारी करने के साथ-साथ दूसरे दलों से ओबीसी उम्मीदवारों को खोज रही है। बेनी प्रसाद वर्मा को केन्द्रीय मंत्री का दर्जा देने के बाद कुर्मी मतदाताओं के साथ प्रजापति, कहार और पाल बिरादरी की मजबूत खेमे बन्दी के लिये बेनीे प्रसाद वर्मा को आगे किया जा रहा है। राजनैतिक दलों ने मुस्लिम कार्ड खेलने की होड़ मच गयी है। मुस्लिम मतों के लगातार फिसलने से हासियें पर आ चुकी समाजवादी पार्टी के मुखिया अयोध्या मामले पर भी राजनीति करने से बाज नही आये लेकिन मुस्लिम समाज में अन्दर ही अन्दर चल रही राजनीति ने राजनैतिक रंग मंच पर मुस्लिम मतों के बल पर सत्ता की चाभी प्राप्त करने वाले दलों को चैका दिया है। लखीमपुर में उपचुनाव में पीस पार्टी के नम्बर दो पर आ जाने के बाद मुस्लिम मतों के लिये सभी राजनैतिक दल अपने पक्ष मंे करने के लिये नये नये लोक लुभावन नारों के साथ जुट गये है क्योंकि 2010 के विधानसभा चुनाव के लिए 19 फीसदी मुस्लिम मतदाताओं की परिणामों पर निर्णायक भूमिका रहेगी। प्रदेश की 403 विस सीटों में से करीब 180 ऐसी हैं जहां चुनावी नतीजों मंे मुसलमानों के रूख का दखल होता है। इसमें 80 से 90 सीटें अधिक प्रभाव वाली है। पूर्वांचल व मध्य प्रदेश से लेकर पश्चिम के जिलों में मुसलमानों का बराबर प्रभाव बढ़ा है। आजमगढ़, पड़रौना, देवरिया, श्रावस्ती, बाराबंकी, बहराइच, फतेहपुर, प्रतापगढ़, बरेली सुलतानपुर, इलाहाबाद, फिरोजाबाद, मुजफ्फरनगर, रामपुर, अलीगढ़, मुरादाबाद, जेपीनगर, मेरठ, बिजनौर व सहारनपुर आदि तमाम जिले मुस्लिम बाहुल्य है। 21वीं सदी में 19वी सदी के रास्ते से यूपी सिंहासन पर कांग्रेस को काबिज कराने के लिये राहुल गांधी ने राजनीति की विसात पर जो राजनैतिक पासा फेका है। उससे बड़े-बड़े धुरन्धर बगले झांगने लगे है। हवा-हवाई संस्कृति के आदि हो चुके राजनेता जनता से पूरी तरह कट चुके है। जनता के आॅगन में जाने की अपेक्षा सरकारी तन्त्र की लाठी और दबंगों के बल पर जनता रूपी भेड़ को अपने बाड़े मंे लाने की कोशिश लगता ग्रहण से सारे राजनैतिक दल तिलमिला गये है। राहुल ने खेत खलिहानों की ऊची नीची पगडंडियों पर चार दिन तक लगातार पसीना बहाकर मायावती से लेकर मुलायम सिंह को एसी रूम में पसीना पसीना कर दिया। राहुल की काट के लिये तरह-तरह के विकल्प खोज रही मायावती के सामने संकटों का पहाड़ टूटता नजर आ रहा है। जिस दलित वर्ग के दम पर बड़ो-बड़ों से लोहा लेने वाली माया से लोहा लेता राहुल का अनूॅठा अन्दाज दलित वर्ग को सिर्फ लुभा ही नही रहा है बल्कि उसे उनके साथ कदम दर कदम चलने को मजबूर कर रहा है। बसपा सुप्रीमों हार मानने वाली नही है उन्होंने राजनीति को पटरी पर लाने के लिऐ रथों के स्थान पर चिट्ठी का सहारा लिया है। प्रधानमंत्री को भेजे पत्रों में अल्पसंख्यकों को आबादी के अनुसार आरक्षण, सवर्णो के लिऐ भी आरक्षण के साथ जाटों के लिऐ आरक्षण की मांग की है। आरक्षण की माँग के बल पर चुनावी वैतरणी पार करने के खेल ने सपा-कांग्रेस को फेल कर दिया है। वोटकटवा दलों के रूप में परिवर्तन मोर्चा के ठा0 हरिवश सिंह के नेतृत्व में छोटे-छोटे दल बड़ों-बड़ों का खेल बिगाड़ने वाले रथ पर सवार है। दलितों मे बीच पैठ बनाने जनवादी पार्टी भी रथ यात्रा निकाल रही है। पीस पार्टी और रालोद के रथ भी कितना महारथ जनता के बीच दिखा पाते है यह तो चुनावी परिणाम के बाद ही पता लगेगा, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के समीकरण को बिगाड़ने के लिये उन्ही के पार्टी के रसीद मसूद भी अलग रथ पर सवार होने की चेतावनी दे रहे है।
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यह स्टोरी 2011 में कई पत्र और पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुई थी,दस्तावेज-2011 के तहत तत्कालीन समय के राजनैतिक माहौल को समझाने के उद्देश्य से पुनः प्रकाशित कर रहे है।
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यह आलेख कापीराइट के कारण लेखक की अनुमति आवाश्यक है।
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लेखक का पता
सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-305, ओ.सी.आर.
बिधान सभा मार्ग,लखनऊ
मो0ः 9415508695,8787093085