ग्राम में गरगों के कुंए की मंजिल यानी कुंए का आधार जिसे टेक्निकल भाषा में नेवार बोलते हैं

103 वर्ष पुराने कुंए की ओगरनी यानी सफाई के पांचवें दिन आज हम मंजिल तक पहुंच गये । कौशाम्बी जनपद के पूरबशरीरा ग्राम में गरगों के कुंए की मंजिल यानी कुंए का आधार जिसे टेक्निकल भाषा में नेवार बोलते हैं , वहां तक मलवा साफ करते करते पहुंच गये । नेवार लकडी़ की वह विशाल वृत्ताकार संरचना है जिस पर कुंए की ईंटों की पक्की चिनाई होती है । लगभग 80 फीट ऊंची पकी ईंटों की वृत्ताकार संरचना लकडी़ की इसी नेवार पर टिकी है और नेवार को आज से103 वर्ष पूर्व एक हरे-भरे गूलर के वृक्ष को काटकर बनाया गया था क्योंकि ग्रामीण इंजीनियर जिन्हें हम लोहार-बढ़ई कहते हैं उनको मालुम था कि केवल गूलर के हरे वृक्ष के काष्ठ में हजार साल तक कीचड़-पानी में पडे़ रहने पर भी वही ताजगी बची रहती है जो गूलर को काटे जाने के दिवस पर होती है । खनिकों ने जब बताया कि नेवार मिल गयी है जो एक बित्ता मोटी है और उसमें लोहे के चुल्ले गडे़ हैं तो मेरे हर्ष का पारावार न रहा।

नेवार को देखने और छू कर महसूस करने के रोमांच के लिए मैं आज फिर कूंए में 80 फीट नीचे उतर गया । कीचड़-कंधे छिछले पानी में मैंने हाथ से नेवार को छुआ , उसमें गडे़ लोहे के कडे़ को हिलाया और खींचा तथा एक झटके में अतीत के उस दिन में पहुंच गया जब मालकिन साहेब गंगा कुंवर ने प्रातःकाल की पुण्य वेला में वरुण पूजा करके नेवार को एक गड्ढे में उतरवाया था । मैंने मन ही मन उस देवी गंगा कुंवर को प्रणाम किया , कुंआ खोदवाने के लिए धन्यवाद दिया और आशीर्वाद की याचना करते , खनिकों का हौसला बढा़ते कूंए के गहराई से ऊपर आ गया । मेरे पिता आचार्य पंडित रमाकांत शुक्ल ने एक सूक्ति आवास पर लिखवाई थी -

अद्य में देवताष्तुष्टाः , पितरः प्रपितामहाः ,

युष्माकं दर्शनादेव नित्यं तुष्टाः सबान्धवाः

इस सूक्ति जो अर्थ मैं समझ पा रहा हूं वह यह है कि आज मेरे (पुरुषार्थ से ) देवता संतुष्ट हुए हैं, पितर और प्रपितामह लोग भी संतुष्ट हुए । और हे देव आपके दर्शन मात्र से मैं सकुटुम्ब नित्य तुष्ट हो रहा हूं । पिता जी के पांडित्य की गहराई में उतरना मेरे सामर्थ्य से बाहर है पर उन्होंने यह सूक्ति अपने पिता के बनवाए विशाल भवन पर लिखवाया था, तो मेरे मन में आज पितर स्वरूपा मेरे पिता की नानी मालकिन साहेब गंगा कुंवर के बनवाए विशाल कूप के लिए यह छन्द ध्वनित हो रहा है। मालिकन साहेब गंगा कुंवर को चिन्ता थी कि उनके वंशज यानी दौहित्रादि (उनके कुल 2 पुत्रियां थीं शिवकली कुंवर व उर्मिला कुंवर ) उनके मंदिर और कुंए का अनुरक्षण व अनुपालना कर पायेंगे या नहीं , तो आज अब जब कुंए की गाद , मिट्टी के टूटे घडो़ं का छूछ या मलवा साफ हो गया है और पानी फिर से निकल आया है , मैं पितर स्वरूपा नानी मालकिन साहेब गंगा कुंवर से विनम्रता से कह रहा हूं कि हे माता आपने अपने संकल्प से जिस कूप-गंगा को हमारे लिए प्रकट किया , जिसका जल पीकर न केवल आप, बल्कि मेरी पितामही उर्मिला कुंवर , पितामह शिवराम गर्ग, पिता आचार्य पंडित रमाकांत शुक्ल , कुटुम्बजन और मैं , मेरी बहन मेरे बच्चे जीवन के इस छोर तक पहुंचे वह अभी सुरक्षित है और मैं अपने पुत्रों को मंदिर व कुंआ सुरक्षित रखने के लिए कह जाऊंगा । हे दिव्य माता , मंदिर-कुंए के निर्माण बाद दो-दो बार " गो शत दान " करने वाली देवी हमें आशीर्वाद दो कि हम पूरे कुटुम्ब के लोग आपको स्मरण रखें और मन्दिर व कुंए की सेवा का बल बना रहे। भोले।नाथ की जय।

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