तब सेंसरशिप से कुछ ही भिड़े थे बाकी तो रेंग रहे थे

 


आज पैंतालिसवीं सालगिरह (26 जून 1976) है, इंदिरावाली इमर्जेंसी की| यहाँ उल्लेख भी उसी दौर की एक घटना का है | शायद यह लोकशाही-प्रेमियों के मर्म को छू ले| मेरा मकसद पूरा हो जायेगा| 


पुलिस की हिरासत में मुझ कैदी के साथ (22 मार्च 1976) सवाल-जवाब के दौरान एक गुजराती डीआईजी साहब ने ताना मारा “प्रेस सेंसरशिप (25 जून 1975) लागू होते ही देशभर के पत्रकार पटरी पर आ गये थे। आपको अलग राग अलापने की क्यों सूझी?” कटाक्ष चुटीला था। मीडिया कर्मियों से अमूमन ऐसा प्रश्न पूछने की ढिठाई कम ही की जाती है। तैश में पत्रकारी स्टाईल में प्रतिकार मैं कर सकता था। मगर हथकड़ी लगी थी। प्रश्नकर्ता थे श्री पाली नादिरशाह रायटर जो बाद में गुजरात के पुलिस महानिदेशक हुये। खाकी वर्दीधारी थे, पर बौद्धिक माने जाते थे। वर्ण से पारसी थे| मुझ पर अभियोग चला था कि अपने सहयोगियों (जिसमें जार्ज फर्नांडिस तथा 23 अन्य थे) के साथ डायनामाइट द्वारा इन्दिरा गाँधी सरकार को हमने दहशत में लाने की साजिश रची थी। भारत सरकार पर सशस्त्र युद्ध का ऐलान किया था। सजा में फांसी मिलती।


मैंने अपने जवाब में डीआईजी से पूछा “कौन सा दैनिक आप पढ़ते हैं?”  वे बोले, “दि टाइम्स ऑफ़ इण्डिया|” बड़ौदा में तब मैं उसी का ब्यूरो प्रमुख था। मेरा दूसरा सवाल था, “इस अठारह पृष्ठवाले अखबार को पढ़ने में 25 जून के पूर्व (जब सारे समाचार बिना सेंसर के छपते थे) कितना समय आप लगाते थे?” उनका संक्षिप्त उत्तर था, “यही करीब बीस मिनट|” मेरा अगला और अन्तिम सवाल था, “और अब?” रायटर साहब बोले, “बस आठ या नौ मिनट|” तब पटरी से मेरे उतर जाने का कारण मैंने उन्हें बताया, “आपसे छीने गये ग्यारह मिनटों को वापस दिलाने के लिये ही मैं जेल में आया हूँ|” बस पूछताछ यहीं समाप्त हो गई। मगर सी.बी.आई. तथा तीन प्रदेशों के पुलिसवाले मेरा कचूमर निकालते रहे। हवालात में हेलिकाप्टर (पंखे से टांगना) बनाते, रातदिन जागरण कराते। मेरे जीवन की रेखा लम्बी थी अतः इन्दिरा गाँधी (20 मार्च 1977) रायबरेली से चुनाव में वोटरों द्वारा पराजित कर दीं गई। भारत दूसरी बार आज़ाद हुआ। हम सलाखों के बाहर आये।


मगर मेरा मानना था कि अगर लोहिया आठ वर्ष ज्यादा जी जाते, बजाय सत्तावन (12 अक्टूबर 1967) पर ही चले जाने के, तो इन्दिरा गाँधी की इमर्जेंसी (1975-77) का विरोध अधिक जोरदार होता। तब 73-वर्षीय लोकनायक जयप्रकाश नारायण अपने कदमकुआँ (पटना) आवास से निकले थे देश में लोकतंत्र की अलख जगाने। अपने से आठ साल कम लोहिया के साथ जुटकर वे महाबली इन्दिरा गाँधी को और बड़ी शिकस्त देते। विन्ध्याचल के दक्षिण में भी, जहाँ इंदिरा-कांग्रेस जीती थी| व्यास नदी से ब्रह्मपुत्र तक, स्वर्ण मन्दिर से कामाख्या पीठ तक, कांग्रेस पार्टी के बीस बरस वाले एक छत्र राज को  1967  में खत्म करनेवाले लोहिया ने अपनी मृत्यु के सात माह पूर्व ही गैरकांग्रेसी भारत का शिल्प गढ़ा था। चौथे विधान सभा निर्वाचन (1967) में इन्दिरा-कांग्रेस का चण्डीगढ़ से गुवाहाटी तक के सारे राज्यों में सफाया हो गया था। सत्ता पलटी थी वोट के बूते।


एक पत्रकार और राजनीति शास्त्र का छात्र होने के नाते मेरे लिये यह पहेली आज तक अनबूझी रही कि जब माँ-बेटे का राज चल रहा था तो फिर प्रधानमंत्री ने लोकसभा का चुनाव (16-19 मार्च 1977 : इंदिरा-संजय) क्यों करवाया? 


यूं तो इन्दिरा गाँधी का ज्योतिष पर घना विश्वास था, फिर भी उन्होंने कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन ही छठी लोकसभा के चुनाव की घोषणा क्यों की? 


चतुर्दशी दुर्मुहूर्त होता है। ऐसा ही हुआ था दुर्योधन के साथ। माद्रीपुत्र, कनिष्ठ पाण्डव, महान ज्योतिषी सहदेव से युद्ध का मुहूर्त जानने शत्रु शिविर में दुर्योधन गया था। सहदेव ने अमावस्या सुझाया क्योंकि तब अगली रात से चन्द्रमा बढ़ता जाता है। अतः सफलता भी क्रमशः मिलती जाती है। कृष्ण ने सहदेव-दुर्योधन का संवाद सुन लिया। चतुर्दशी की ही रात में कृष्ण ने पांडवों से कहा कि अमावस्या लग गई है, अतः यमुना स्नान कर लो। गोकुल के नटवरलाल ने चालाकी की और दुर्योधन भ्रमित हो गया। उसने कौरव सेना को कुरूक्षेत्र में रणभेरी बजाने का आदेश दे दिया। फिर क्या हुआ ? जाना माना इतिहास है। 


यही हुआ कांग्रेस प्रधानमंत्री के साथ| उन्होंने छठे लोकसभा के निर्वाचन की घोषणा आकाशवाणी पर राष्ट्र को संबोधन, 18 जनवरी 1977 के दिन की| वह चतुर्दशी थी। इसके महीने भर पूर्व एक विस्मयात्मक घटना हुई। दिसंबर 1976 में मेरे अग्रज श्री के. नारायण राव ने मुझे पत्र लिखा। इसे सी.बी.आई. ने देखा था और तिहाड़ जेल के निदेशक ने सेंसर की मुहर लगा कर मुझे वार्ड में भेजा। इसमें उन्होंने लिखा था कि फरवरी-मार्च 1977 में राजनीतिक उथल पुथल होगा। उन्होंने लिखा कि मुझे वे मार्च माह में जेल के बाहर देखेंगे। मेरे अग्रज तब कोलकता के एकाउन्टेन्ट जनरल कार्यालय में सीनियर डी०ए०जी० थे। आजकल वे आई.ए.ए.एस. से अवकाश लेकर भारतीय विद्या भवन (नई दिल्ली) में ज्योतिष विभाग के संस्थापक तथा त्रैमासिक जर्नल ऑफ़ एस्ट्रोलॉजी के सम्पादक हैं। उनके पत्र में लिखित भविष्यवाणी अक्षरशः सच हुई। फरवरी 2, 1977, वरिष्ठ मंत्री जगजीवन राम ने इन्दिरा गांधी की काबीना से त्यागपत्र दे दिया। हेमवती नन्दन बहुगुणा और उड़ीसा की नन्दिनी सत्पथी के साथ कांग्रेस फ़ार डिमोक्रेसी बनाई तथा जनता पार्टी के साथ चुनाव लडे़। कांग्रेस और खुद इन्दिरा गाँधी हार गयी। मैं तिहाड जेल के बाहर आ गया।


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