तेजाब पीड़िताओं के लिए कविता -हौंसला
हौंसला
हार मानना होता अगर आसान तो मान भी लेती तेरी मनमानियों की क्या तुझे सजा भी ना देती
चेहरा जलाया तूने तेजाब से तो क्या छुपा कर चेहरे को रहती
अन्याय किया तूने और सजा मिली मुझको
तो क्या तेरे अन्याय को यूं ही सहती
सूरत को बद बना क्या सोचा तूने क्या मुंह छुपा कर किसी कोने में रोती
मेरी खूबसूरती मेरे चेहरे में नहीं मेरे हौसलों में है यह बात तुझे पता होती
तब मैं खुश होती फेंक सकता है तो फेंक तेजाब मेरे हौंसलों पर चेहरे पर फेंकने से मेरी खूबसूरती कम नहीं होती ।
मैं हूं वह सूरज किरणें जिसकी उजाला कर देती है हर घर में तू कैद करे कितना भी मेरी रोशनी कम नहीं होती
मैं हूं वह ज्वालामुखी जिस पर डाला तूने तेजाब था पता नहीं तुझको कि होना इसका क्या अंजाम था
अब तू नदियां बहा कर भी देख मेरी प्रचंडता कम नहीं होती
समझा तूने मैं हूं मिट्टी का वो घरौंदा समुद्र से जिसकी कभी दोस्ती नहीं होती
अब तू मुझे खत्म करने की कोशिश भी कर के देख तेरी लाख कोशिशों से भी मुझ में जिंदगी कम नहीं होती
प्रियंका पुरोहित कवयित्री
भरतपुर राजस्थान