गांव की मिट्टी

गांव की माटी सोना माटी
देखो सोना उपजाए।
खेती करता जब किसान
तो अपने सपनों को बोता।
   घाम  छांह की सोच न करता
कब जगता वह कब सोता।
लहलह फसलें लहरातीं जब
तब उसका मन हर्षाए।
गांव की माटी सोना माटी
देखो सोना उपजाए।
माटी से फसलें,फसलों से
अन्न हमारे घर आता।
माटी में बसता किसान
अन्नदाता तब कहलाता।
धान रोपती कोई किसानिन
झूम झूम कजरी गाए।
गांव की माटी सोना माटी
देखो सोना उपजाए।
तिलक करें हम इस माटी से
चंदन सा धारें इसको।
जिस पर कृपा प्रभु की हो
उसको मिलती यह माटी
गांव की माटी सोना माटी
देखो यह सोना उपजाए।
इससे ही तो जग को सारे
जीवन सच में मिल पाए।
रूप सुनहरा न्यारा इसका
धानी चूनर लहराए।
यह ही तो जीवन देती है
इसको मिल हम शीष झुकाएं


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